Saturday, April 18, 2020
मेअयारे ह़क़
लेख: जैनुल आबेदीन नदवी
अनुवाद: मो साबिर हुसैन नदवी,पूर्णिया,बिहार
चारों ओर हर कोई ख़ुद को ह़क़ पसंद और सच्चाई का झंडा उठाने वाला बताने में व्यस्त है और ताज्जुब है कि ख़ुद के तय किए हुए सिद्धान्तों पर अमल करने ही को ह़क़ समझने की भूल करते हुए इसी की दावत दे रहा है, जिस को क़बूल करने वाला उस की नज़र में अहले ह़क़ और रद्द करने वाला बातिल समझा जाता है,शरीअत व त़रीक़त और दावाए ह़क़ की आड़ में मन चाही बातौं को मेअयारे ह़क़ बावर कराने का एक सिलसिला है,जिस से मुंह फेरना ,कुछ समझा दार समझे जाने वाले हज़रात की नज़रौं में गोया बहुत बड़ा गुनाह है, जबकि सच्चाई यह है कि दीन व शरीअत और नेज़ामे ह़क़ पर किसी ख़ास व्यक्ति की एजारा दारी नहीं कि वह जिसे चाहे अहले ह़क़ बताए,और जिसे चाहे उस से बाहर कर दे, बल्कि इस का एक मेयार है जिस का नाम तक़वा(अल्लाह का डर) है,इस मेअयार पर पूरा उतरने वाला ह़क़ पसंद और शरीअत की पैरवी करने वाला समझा जाएगा, चाहे वह एक चरवाहा ही कियौं न हो, और जिस की जिंदगी ज़ुहदो तक़वा से ख़ाली हों उसे अहले ह़क़ शुमार करना ह़क़ का ख़ून करने के बराबर होगा, चाहे वह साह़ेबे जुब्बा व दस्तार और एमामा व पायजामा ही कियौं न हो, और तक़वा का तराज़ू लेबास और ह़ुलया नहीं बल्कि ऐसा दिल है जो अहकामाते किताब और इत्तेबाए सुन्नत से मोज़य्यन हो,
लेकिन अफ़सोस है कि यह मेअयार लोगों की नज़रों में (नऊज़ो बिल्लाह)फ़रसूदा/पुराना हो चुका है और लोग ज़ाहरी शकलो सूरत को ही तक़वा का पैकर समझने के आदी हो चुके हैं, यही कारण है कि ह़क़ बयानी की सलाहियत ख़त्म होती जा रही है, और मिल्लत का बेड़ा डूबने के बिल्कुल क़रीब पहूंच चुका है मुसलमान अंध भक्त नहीं होता और जो अंध भक्त हो वह मुसलमान नहीं हो सकता, और अंधी अक़ीदत ने ही हमें यह दिन देखने पर मजबुर किया है,इस लिए इस मरज़/बीमारी से ख़ुद को निकालने और सह़ीह़ माना) अर्थ में इसलाम को अपनाने की कोशिश किजये.
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