Tuesday, May 12, 2020

लेखक : जफर अहमद खान
पहली बात : रमजानुल मुबारक एक पवित्र और बरकत वाला महीना है, इसे बहुत सारी विशेषताएं और कुछ प्रमुख गुण प्राप्त हैं, जिसका अंदाजा प्रेषित मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की हदीस से लगाया जा सकता है, हजरत अबू हुरैरा रजिअल्लाहू अन्हो का वर्णन है कि नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया "जो व्यक्ति ईमान की अवस्था में पुण्य की नियत से रमजान के रोजे रखता है उसके पिछले पाप बख्श दिए जाते हैं", रमजान का एक-एक क्षण अत्यंत महत्वपूर्ण और सआदतो वाला है, अर्थात अन्य ग्यारह माह मिलकर इसकी बराबरी नहीं कर सकते, इस लेख में इस माह की कुछ प्रमुख विशेषताएं और महत्वपूर्ण उपासनाओ (इबादत) का वर्णन करने की कोशिश की गई है, परमेश्वर हम सबको इसके अनुसार अमल करने की तौफीक अता फरमाए आमीन।


रोजा(उपवास, ब्रत): रमजान उल मुबारक की विशेष और महत्वपूर्ण इबादत रोजा इस्लाम के मूलभूत स्तंभों में से एक स्तंभ है, जैसा की हदीस में है, हजरत अब्दुल्लाह इब्ने उमर का वर्णन है वह फरमाते हैं मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को फरमाते हुए सुना, "इस्लाम की नींव पांच चीजों पर रखी गई है, इस बात की गवाही देना कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं और प्रेषित मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल, है नमाज कायम करना, जकात अदा करना, हज करना, और रमजान उल मुबारक के रोजे रखना, यघपि एकेश्वरवाद (तौहीद) व रिसालत को मान लेने के बाद मनुष्य इस्लाम में दाखिल होकर मुसलमान कहलाने का हकदार हो जाता, है मगर उसका धर्म (दीन) उस वक्त तक पूर्ण नहीं होता जब तक वह अन्य स्तम्भों मानने के साथ उस पर अमल न करे, ऊपर वर्णित इस्लाम के अरकान में से किसी एक रुक्न का इनकार करते हुए उसको छोड़ देने वाला काफिर हो जाएगा, अलबत्ता सुस्ती और काहिली के कारण छोड़ने वाला कबीरा गुनाह का मुरतकिब और फासिक(पापी) होगा।


कुरान मजीद का अवतरण: रमजान उल मुबारक के महीने में ही अल्लाह ताला ने हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम को मानव जाति के लिए इस्लाम के संदेश के साथ प्रेषित किया, और इसी पवित्र महीने में कुरान मजीद को अवतरित किया, जैसा कि अल्लाह ताला का फरमान है, "माहे रमजान वह महीना है जिसमें कुरान अवतरित किया गयाा, जो लोगों को सही राह दिखाने वाला है, और जिसमें हिदायत और सत्य असत्य की पहचान की निशानियां है, रमजान और कुरान की आपस में बड़ी समानताएं हैं, यह दोनों प्रलय के दिन बंदे के हक में सिफारिश करेंगे, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया, "प्रलय (कयामत) के दिन रोजा और कुरान दोनों बंदे की सिफात करेंगे, रोजा कहेगा हे परमेश्वर, मैंने इस बंदे को दिन के समय खाने पीने और इच्छाएं पूरी करने से रोके रखाा, कुरान कहेगा कि मैंने इसको रात के समय सोने से रोके रखा तो आप मेरी इसके लिए शफाअत कुबूल कर लीजिए, तो यह दोनों बंदे की अनुशंसा करेंगे और उनकी अनुशंसा स्वीकार की जाएगी", (मुस्नद अहमद)।


पुण्य भाव में बढ़ोतरी: रमजानुल मुबारक पुन्य के भाव में बढ़ोतरी और बुलंदी  दरजात का महीना हैै, इस महीने में पुण्य का भाव बढ़ा दिया जाता है, नफिल का सवाब फर्ज के बराबर और फर्ज का सवाब सत्तर फर्ज के बराबर दिया जाता है


एक साल के पापों की क्षमा याचना: इस पवित्र महीने में साल भर के पापों की क्षमा का वादा है, प्रेषित मोहम्मद सल्लल्लाहो वसल्लम का फरमान है पाांचो नमाजे, हर जुमा दूसरे जुम्मा तक, और रमजान दूसरे रमजान तक दरमियानी मुद्दत के गुनाह माफ कर दिए जाते हैं, शर्त यह है कि बड़े-बड़े गुनाहों से बचा जाए, (मुस्लिम)।


गुनाहों का मिटा दिया जाना:  रोजा द्वारा गुनाहों को मिटा दिया जाता है, हजरत हुजैफा रजि अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि हजरत उमर  ने पूछा कि फितने से सम्बंधित रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो वसल्लम की हदीस किसी को याद है, हुजैफा रजिअल्लाहु अन्हु ने कहा मैंने सुना है आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया था, मनुष्य के लिए उसके बाल बच्चे उसका माल और उसके पड़ोसी फितना आजमाइश और इम्तिहान है जिसका कफ्फारा नमाज रोजा और सदका बन जाता है,(बुखारी)।


रोजा ढाल है: हजरत अबू हुरैरा रजिि अल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाय, रोजा एक डाल है इसलिए रोजेदार न गंदी बातें करें न जहालत वाला मामला करें, अगर कोई व्यक्ति उससे लड़ाई झगड़ा या गाली गलौज करें तो बस इतना कह दे कि मैं रोजेदार हूं मैं रोजेदार हूं, (बुखारी), ढाल हर बुरे काम हर नाफरमानी हर गुनाह और हर आजाब से, ढाल मानव की रक्षा के लिए है, इसकी पनाह में आया हुआ इंसान सीरत व किरदार की रोशन मिसाल होता है और नेकी के घेरे में रहता है।


रोजे का बेहिसाब पुण्य(सवाब): हजरत अबू हुरैरा रजि अलहु से अन्हु से रिवायत है वह अल्लाह के नबी सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम से रिवायत करते हैं कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने अल्लाह ताला से नकल किया कि अल्लाह तबारक व ताला फरमाता है, "हर अमल कफ्फारा है और रोजा मेरे लिए है मैं ही उसका बदला दूंगा और निसंदेह रोजेदार के मुंह के भू अल्लाह के नजदीक मुस्क की बू से भी ज्यादा है" अब सवाल यह है कि इसमें रोजेदार के मुंह की बू की जो फजीलत बयान की गई है वह क्यों? उसका कारण क्या है? शोधकर्ताओं के अनुसार इस बू की तारीफ इसलिए की गई है ताकि लोग रोजेदार के साथ बातचीत करने में बुरा न महसूस करें, पता चला कि हमें रोजेदार के मुंह की इस बू को ऐब नहीं समझना चाहिए, और उसे नागवार समझते हुए रोजेदारों से कटकर अकेलापन नहीं अख्तियार करना चाहिए।


फरिश्तों की दुआ: रोजेदार के लिए फरिश्ते इफ्तार के वक्त तक दुआ करते हैं, फरिश्ते अल्लाह की मासूम(गुुनाहोंसे पाक) मखलूक है, कभी परमेश्वर की अवज्ञा नहीं करते, हमेशा अल्लाह की आज्ञाकारी में लगे रहते हैं, उनकी दुआ कबूलियत के ज्यादा करीब होती, है रोजेदारों के हक में ऐसी नूरानी मखलूक का दुआ करना उम्मते मोहम्मदिया के मरतवे की बलन्दी को साबित करता है तो वहीं रोजे के महत्व को भी दर्शाता है।


रमजान धैर्य(सब्र)का महीना है: रमजान सब्र का महीना है और सब्र का फल जन्नत है, इसका मतलब यह है कि रोजेदार जब इस महीने में सिर्फ अल्लाह के लिए अल्लाह के हुक्म से और अल्लाह की खुशी के लिए अपनी पसंद की तमाम चीजें छोड़कर अपनी ख्वाहिशात को रोककर सब्र करता है, तो अल्लाहपाक ऐसी कुरबानी देने वाले बंदों को जन्नत की राहतें और लज्जतें अता फरमाएगा। इस लिए अगर रोजे वगैरह में कुछ कठिनाई हो तो उसे बहुत शौक से सहन(बर्दाश्त) करना चाहिए, गुस्सा और हंगामा करने से बचना चाहिए, झगड़े और गाली गलौज नहीं करना चाहिए, जैसा कि बहुत से लोगों की आदत होती है, अल्लाह ताला का इरशाद है सब्र करने वालों ही को उनका पूरा पूरा बेशुमार अजर(पुण्य) दिया जाता है, यानी ईमान और तकवा की राह में कठिनाइयां भी आएंगी और इच्छाओं का त्याग भी करना पड़ेगा, जिसके लिए धैर्य की आवश्यकता होगी, इसलिए सब्र करने वालों की फजीलत भी बयान कर दी गई कि उनको उनके सब्र के बदले में इस तरह पूरा पूरा अज्र दिया जाएगा कि उसे हिसाब के पैमानों से नापना मुमकिन ही नहीं होगा।


शैतान ज़ंजीरो में जकड़ दिए जाते हैं: हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाह तआला अन्हु ने कहा कि रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की जब रमजान का महीना शुरू होता है तो आसमान के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और एक रिवायत में है कि जन्नत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं और जहन्नम में दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं, और शैतान ज़ंजीरो में जकड़ दिए जाते हैं और एक रिवायत में है कि रहमत के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं,(बुख़ारी/मुस्लिम), हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह तआला अलैहि इस हदीस की शरह में लिखते हैं कि आसमान के दरवाज़े खोल दिए जाने का मतलब है लगातार रहमत का भेजा जाना और बगैर किसी रुकावट के अल्लाह की बारगाह में अम्ल का पहुँचना और दुआ क़बूल होना और,जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाने का मतलब है अच्छे अमल की तौफ़ीक़ और हुस्ने कबूल अता फरमाना,और दोज़ख़ के दरवाजे बंद किए जाने का मतलब है रोज़ा दारों के नुफुस को बुरी बातो की आलूदगी से पाक करना और गुनाहों पर उभारने वाली चीज़ो से नजात पाना और दिल से लज़्ज़तों के हासिल होने की ख़्वाहिशों को तोड़ना,और शैतानों को ज़ंजीरों में जकड़ दिए जाने का मतलब है बुरे ख्यालों के रास्तों का बंद हो जाना।


लैलतुल कद्र: रमजान में एक रात ऐसी आती है जो हज़ार महीनों से बेहतर है हजरत अनस रजि अल्लाह वालों से रिवायत है कि रमजान मुबारक के आगमन पर एक मर्तबा रसूले पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया यह जो महीना तुम पर आया है इसमें एक रात ऐसी है जो हजार महीनों से अफजल है जो जो व्यक्ति इस रात से वंचित रह गया तो गया वह सारे ही भलाई उसे वंचित रहा और इस रात की भलाई से वही व्यक्ति वंचित रह सकता है जो वास्तव में वंचित हो, (इब्ने माजह), लैलतुल क़द्र रमज़ान की आख़िरी दस दिनों की ताक़ रातों में से किसी एक रात में होती है, अतः 21, 23, 25, 27, या 29 वीं रात में इबादत करके इसे पाने का प्रयत्न करना चाहिए, इस रात में फ़रिश्ते भी आसमान से ज़मीन पर उतरते हैं और फरिश्तों के उतरने के दो मक़सद होते हैं एक ये कि इस रात में जो लोग इबादत में लगे हुए हैं तो फ़रिश्ते उनके हक में रहमत की दुआ करते हैं और दूसरा मक़सद आयते करीमा में ये बताया गया है कि अल्लाह तआला इस रात में साल भर के फैसले फरिश्तों के हवाले फरमा देते हैं, ताकि वो लोग अपने अपने वक़्त पर उन कामों को करते रहें।


जहन्नम(नर्क)से आजादी(मोक्ष): इफ्तार (व्रत तोड़ने) के समय अल्लाह ताला बंदो को जहन्नम से आजाद करताा, है इसलिए विशेष रूप से इफ्तार के समय रोजे की क़ुबूलियत, गुनाहोंकी मगफिरत, दरजात की बुलंदी, जहन्नम से आजादी और जन्नत में दाखिले की दुआ करनी चाहिए, हदीस में है "अल्लाह ताला हर इफ्तार के समय बंदो को जहन्नम से आजादी देता है(अहमद), और एक रिवायत में इस तरह है" अल्लाह ताला हर इफ्तार के समय रोजेदारों को जहन्नम से आजादी देता है यह आजादी हर रात मिलती है"(इब्ने माजह)।


दुआ की कुबूलियत : कुछ ऐसे ख़ास वक़्त और टाइम होते हैं जिन में दुआ कुबूल होती है , सही मानों में दुआ की कुबूलियत तो हर वक़्त हो सकती है जब भी पूरे दिल और यकीन के साथ अगर मांगी जाये लेकिन कुछ खास घड़ियाँ ऐसी होती हैं जिन को अल्लाह तआला ने दुआ कुबूल करने के लिए ख़ास फ़रमाया है और और जिस में दुआ रद नहीं की जातीी, इस पवित्र महीने की एक महत्वपूर्ण विषेष्हता इफ्तार(ब्रत तोड़ने के समय) दुआ की कुबूलियत है, ज़रतअबू हुरैरह रज़ि से रिवायत है के रसूलुल्लाह(सल्लल्लाहु अलयहि वसल्लम) का इरशाद है के तीन लोगों की दुआ रद नहीं की जाती हैः (१) रोज़ेदार की दुआ, यहांतक के वह इफ़तार कर ले, (२) आदिल बादशाह की दुआ, (३) मज़लूम की दूआ(बद दुआ) अल्लाह तआला उस को बादलों के ऊपर उठा लेते हैं और उस के लिए आसमान के दरवाज़े खोल देते हैं और अल्लाह तआला फ़रमाते हैं के मेरी इज़्ज़त की क़सम ! में ज़रूर बिज़ ज़रूर मदद करूंगा, अगर चे कुछ मुद्दत के बाद ही क्युं न हो.(तिरमिजी)


आखिरी दस दिनों की विशेष इबादत: इस महीने के आखिरी दस दिनों में एक और विशेष इबादत उम्मते मुस्लिमा को प्रदान की गई है इसे ऐतिकाफ कहा जाता है, एतिकाफ का अर्थ है रुकना और ठहरना, अल्लाह की खुशी प्राप्त करने के लिए इबादत, जिक्र अज्कार करने की नियत से विषेश तरीके से एक समय के लिए मस्जिद में ठहरने का नाम एतिकाफ है,  एतकाफ में बैठने वाले को दो हज और एक उमरे का सवाब मिलता है, यह सुन्नते  मुअक्कदा अलल किफाया है, अर्थात कोई एक व्यक्ति एतिकाफ के लिए बैठता है तो सारी आबादी गुनहगार होने से बच जाती है, परंतु अगर किसी मस्जिद की आबादी से कोई एतिकाफ में नहीं बैठता है तो वह पूरी आबादी गुनहगार होती है, एतकाफ में बैठने वाला व्यक्ति फुजूल(बेकार) की बातचीत, खानपान और नींद से दूर रहने का प्रशिक्षण प्राप्त करने के साथ ही अल्लाह की इबादत, कुरान की तिलावत, तौबा की आदत एवं अपने आप को समझने का मौका प्राप्त करता है, और एतकाफ से व्यक्ति गुनाहों से दूर रहता है, अतः जो व्यक्ति रमज़ान की अंतिम दहाई में एतिकाफ करने में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण करना चाहता है तो वह रमज़ान की इक्कीसवीं रात को सूरज डूबने से पहले मस्जिद में प्रवेश कर जाए, ताकि उसमें से कोई चीज़ उस से न छूटने पाए, और ईद की रात सूरज डूबने के बाद बाहर निकले, चाहे महीना पूरा हुआ हो या कम हो गया हो, और सर्वश्रेष्ठ यह है कि वह ईद की रात मस्जिद में ठहरा रहे यहाँ तक कि उसमें ईद की नमाज़ पढ़ ले, या उस से निकल कर ईद की नमाज़ के लिए ईदगाह जाए यदि लोग ईदगाह में नमाज़ पढ़े।

अब इतने महत्वपूर्ण विशेषताओं फजाइल व बरकात एवं अजमतो पर आधारित पवित्र महीने को बेकार के कामों में लिप्त होकर या खेल कूद और सुस्ती व काहिली में ना विता कर उस के एक-एक क्षण और बहुमूल्य समय को प्रयोग में लाते हुए निम्न कार्य करके अपनी दुनिया और आखिरत के जीवन को सफल बनाने के लिए पूरी तरह से फायदा उठाने का प्रयत्न करना चाहिए, परमेश्वर हम सबको इस की तौफीक अता फरमाए, आमीन।


रोजा रखना(सौम): इस पवित्र महीने की विशेष और महत्वपूर्ण इबादत है रोजे रखना, इसकी बड़ी फजीलत और बड़ा सवाब है, हजरत अबू हुरैरा रजि अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया कि "हर अमल आदमी का दोगुना होता है, इस तरह की एक नेकी दस तक हो जाती है यहां तक कि सात सौ तक बढ़ती, है और अल्लाह ताला ने फरमाया है कि मगर रोजा खास मेरे लिए है और मैं खुद उसका बदला देता हूं, इसलिए कि बंदा मेरा अपनी इच्छाएं और खाना मेरे लिए छोड़ देता है, और रोजेदार को दो खुशियां हैं एक खुशी उसके इफ्तार के वक्त, दूसरी खुशी मुलाकाते परवरदिगार के वक्त, और रोजेदार के मुंह की बू अल्लाह ताला को मुश्क से ज्यादा पसंद है, (मुस्लिम), दूसरी हदीस में है हजरत अबू हुरैरा बयान करते हैं कि रसूलअल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया "जिसने ईमान की अवस्था में और सवाब की नियत से रमजान के रोजे रखे उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाते हैं (बुखारी), इसलिए रोजे में खाने पीने से रुक जाने के साथ-साथ हराम चीजें, झूठ, चुगली, गीबत आदि से रुक जाना भी जरूरी है, ताकि रमजान और अन्य औकात में स्पपष्टअन्तर हो, अन्यथा कहीं ऐसा ना हो कि रोजा रखने की सूरत में हमें केेवल भूख प्यास के सिवा कुछ नसीब ना हो।


कयामे रमजान (तरावीह तहज्जुद इत्यादि): रमजान में कयाम करना अन्य दिनों में कयाम करने से अफजल है और उसका सवाब रोजे के समान है, अगर ईमान और एहतिसाब के साथ किया जाए, नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है, "जो रमजान में ईमान और सवाब की उम्मीद के साथ कयाम करता है उसके सारे गुनाह माफ कर दिए जाते हैं (मुस्लिम), और अल्लाह ताला का फरमान है "रहमान के सच्चे बंदे वह है जो जमीन पर धैर्य के साथ चलते हैं और जब जाहिल लोग उनसे बातें करने लगते हैं तो वह कह देते हैं कि सलाम है, (सलाम से तात्पर्य यहां झगड़े से बचने के लिए उनकी अनदेखी करना है) और जो अपने रब के सामने सजदे और कयाम करते हुए रातें गुजार देते हैं (अल फुरकान:६३), हजरत साइब इब्ने यजीद रजि अल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि अमीरुल मोमिनीन हजरत उमर बिन खत्ताब रजििअल्लाहु के शासनकाल में रमजान उल मुबारक के महीने में सहाबा और ताबईन बीस रकात तरावीह  पढ़ते थे, और वह सौ सौ आयतेे पढ़ा करते थेे, और अमीरुल मोमिनीन हजरत उस्मान बिन अफ्फान रजिअल्लाह अन्हु के शाासनकाल बहुत देर तक कयाम करने के कारण हम अपनी लाठियों पर टेक लगाया करते थे (सुनन बैहकी)।


सदकात एवं जकात: हज़रत इब्ने अब्बास रजि अल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलअल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम सब लोगों से ज्यादा दानी थे, और रमजान में दूसरे औकात के मुकाबले में जब जिब्राइल अलैहिस्सलाम आप सल्लल्लाहो वाले वसल्लम से मिलते बहुत ही ज्यादा दानशीलता फरमाते, जिब्राइल अलैहिस्सलाम रमजान की हर रात में आप सल्लल्लाहो सल्लम से मुलाकात करते और आप सल्लल्लाहो वाले वसल्लम के साथ कुरान का दौर करते, अर्थात नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लोगों को भलाई पहुंचाने में बारिश लाने वाली हवा से भी ज्यादा दान शीलता फरमाते थे (बुखारी), आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम हर प्रकार से तमाम मानव जाति में बेहतरीन दानी थे, आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की दान शीलता की मिसाल बारिश लाने वाली हवाओं से दी गई जो बहुत ही योज्ञ्य है, रहमत की बारिश से जमीन हरी-भरी हो जाती है, आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की दानशीलता से मानव जाति की उजड़ी हुई दुनिया आबाद हो गई, हर तरफ हिदायत के दरिया बहने लगे, लोग अपने पैदा करने वाले को पहचानने लगे और लोगों के चरित्र अच्छे हो गए, आप सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम का अनुसरण करते हुए हमें भी दानशीलता दिखानी चाहिए, वििशेष रूप से  वर्तमान लाकडाउन की स्थिति में इसका महत्व और बढ़ जाता है, अतः हम सबको अपने पड़ोसियों गरीबों मजदूरों और योग्य लोगों की अपनी जकात और सत्कार से मदद करनी चाहिए।


खाना खिलाना: और अल्लाह ताला की मोहब्बत में मिस की यतीम और कैदियों को खाना खिलाते हैं हम तो तुम्हें सिर्फ अल्लाह ताला की आज्ञा के लिए खिलाते हैं ना तुमसे बदला चाहते हैं न शुक्रगुजारी(अल इंसान:८,९), खाने की मोहब्बत के बावजूद अल्लाह की आज्ञा के लिए योग्य लोगों को खाना खिलाते हैं, कैदी अगर गैर मुस्लिम हो तब भी उसके साथ अच्छा व्यवहार करने का हुक्म, है जैसे कि जंग-ए-बदर के काफिर कैदियों के संबंध में नबी सल्लल्लाहू सल्लम ने सहाबा को हुक्म दिया कि उनकी इज्जत करो, चुनान्चे सहाबा पहले उन को खिलाते थे बाद में खुद खाते थे, इसी तरह नौकर चाकर भी इसी के अंतर्गत आते हैं जिनके साथ अच्छे बर्ताव की ताकीद की गई है, आप सल्लल्लाहो सल्लम की आखिरी वसीयत यही थी कि नमाज और अपने गुलामों का ख्याल रखना, एक रिवायत में है हजरत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रजि अल्लाहु अन्हुमा से की एक दिन एक आदमी ने नबी ए करीम सल्लल्लाहो वाले वसल्लम से पूछा कि कौन सा इस्लाम बेहतर है आपने फरमाया कि तुम खाना खिलाओ और जिसको पहचानो उसको भी और जिसको ना पहचानो उसको भी सलाम करो यानी सब को सलाम करो (बुखारी), गरीबों और मिस्कीन ओं को खाना खिलाना इस्लाम में एक उच्च उच्च स्तर की नेकी माना गया हैै, इस हदीस से यह भी पता चलता है कि इस्लाम का मंशा यह है कि मानव जाति में भूख एवं तगदसती का इतना मुकाबला किया जाए कि कोई भी इंसान भूख का शिकार ना हो सके, और अमन-चैन एवं शान्ति को इतना फैलाया जाए कि बद अमनी का एक मामूली सा डर बाकी न रह जाए, अतः हम सबको अपनी औकात हैसियत और  जानकारी के अनुसार के हर भूखे को खाना खिलाने की फिक्र करनी चाहिए, इसके लिए अमीर और गरीब  नहीं देखना चाहिए, अलबत्ता गरीबों मिस्कीनो मोहताजो और पड़ोसियों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।


कुरान करीम और रमजान: कुरान करीम को रमजान उल मुबारक से विशेष संबंध और गहरी समानता हैै, जैसे कि रमजान उल मुबारक में कुरान अवतरित हुआ, नबी सल्लल्लााहूअलेही  वसल्लम रमजान उल मुबारक में तिलावते कुरान दूसरे दिनों की तुुलना में ज्यादा करते थे, हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम रमजान मुबारक में नबी अकरम सल्लल्लाहो वसल्लम को कुरान करीम का दौर कराते थे, इसी प्रकार तरावीह में खत्म कुरान का एहतमाम करना, सहाबा किराम रजि अल्लाह अन्हुम और बुजुरगाने दीन का रमजान में तिलावत का विशेष एहतमाम करना यह सारी बातें इस विशेषता को दर्शाती हैं, इस पवित्र माह में अधिक से अधिक कुरान की तिलावत में व्यस्त रहना चाहिए, निसंदेह कुरान मजीद की तिलावत अल्लाह तालाको बेहद प्रिय है उसका पढ़ना और सुनना दोनों सवाब का कार्य है, उसके एक-एक शब्द पर पुण्य का वादा है, परंतु यह भी वास्तविकता है कि उसका समझना उसकी गहराई में जाना और उस पर अमल करना निहायत ही आवश्यक है, और वास्तव में कुरान के अवतरण का यही मकसद है,  अल्लाह तआला का इरशाद है, "यह बड़ी बरकत वाली किताब है जो (ए नबी) हमने तुम्हारी तरफ अवतरित की है ताकि यह लोग उसकी आयात पर गौर करें और अक्ल व  फिक्र रखने वाले इससे सबक लें, अतः इस रमजान मुबारक में हम सब यह वादा करें कि कई मर्तबा कुरान खत्म करने की जगह कुरान करीम को ठहर ठहर कर समझ कर पढ़ने का एहतमाम करेंगे, और कई मर्तबा देखकर कुरान को मुकम्मल करने से एक मर्तबा कुरान को उसके अनुवाद और व्याख्याओं के साथ पढ़ने की कोशिश करेंगे, यदि परमेश्वर ने चाहा तो हमें इससे बहुत ज्यादा फायदा होगाा, कुरान को ऐसे पढ़ने का प्रयत्न करेंगे जैसे हम अल्लाह ताला से बात कर रहे हो, जहां नेकियो और अच्छाइयों का वर्णन होगा वहां हम यह आशा करेंगे कि हम उन नेकियो और अच्छाइयों को अपनाएं और जहां बुराइयों और गुनाहों का वर्णन होगा वहां हमारी इच्छा यह होगी कि हम उन बुराइयों और गुनाहों से बच जाएं और अल्लाह से इन बुराइयों और गुनाहों से बचने की दुआ का एहतमाम भी करेंगे, नेक और अच्छे लोगों का वर्णन आएगा तो उनमें शामिल होने की इच्छा करेंगे बुरे लोगों का वर्णन होगा तो उन उन से दूर रहने की दुआ करेंगे।


फज्र की नमाज़ के पश्चात सूर्योदय तक बैठना: हजरत जाबिर बिन समरह रजियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब सुबह की नमाज पढ़ लेते तो अपनी जगह पर बैठे रहते जब तक कि सूर्य अच्छी तरह ना निकल आता (मुस्लिम), हजरत अनस बिन मालिक रजिअल्लाहु अन्वाहु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया जो शख्स जमात के साथ फजर की नमाज अदा करें और फिर बैठकर अल्लाह ताला का जिक्र करता रहे यहां तक कि सूर्य उदय हो जाए फिर दो रकात नमाज अदा करे तो उसके लिए पूूर्ण पूर्ण पूूर्ण  हज उमरा करने का सवाब होगा (तिर्मीजी), जब यह साधारण दिनों की बात है तो रमजान मुबारक जैसे पवित्र महीने में इन नेकियों के क्या ही कहने, अतः हमें भी यह कार्य करके इस तरह के पुण्य को प्राप्त करने काा प्रयत्न करना चाहिए।


एतिकाफ (एकांतवास): परमेश्वर की उपासना के लिए निर्धारित समय में मस्जिद में ठहरने और अपने ऊपर मस्जिद को अनिवार्य करने को एतिकााफ कहते हैं, यह फजीलत के कामों और बड़ी इबादत में से एक इबादत है, एतिकाफ हर वक्त सुन्नत है और सबसे बेहतर रमजान के आखिरी दस दिनों में इतिकाफ करना है, क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम रमजान के आखिरी दस दिनों में हमेशा एतिकाफ  किया करते थे (जादुल मआद), हजरत आयशा रजि अल्लाह ताला अन्हा फरमाती हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम इस फानी दुनिया से पर्दा फरमाने तक रमजान के आखिरी दस दिनों में ऐतिकाफ किया करते थे और उनके बाद उनकी अज्वाजे मुतह्हरात (पत्नियां) ऐतिकाफ किया करती थी (बुखारीी,  हजरत अबू हुरैरा रजिअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलअल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हर साल रमजान में दस दिन का ऐतिकाफ किया करते थे लेकिन जिस साल आप सल्लल्लाहो वाले वसल्लम  उसदुनिया से पर्दा फरमाया उस साल आप सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम ने बीस दिन का ऐतिकाफ किया था (बुखारीी,  एतिकाफ की हिकमत यह है कि इसके द्वारा आदमी कुछ समय के लिए दुनिया से कट जाता है, दुनिया और दुनिया वालों के साथ व्यस्तता से बच जाता हैै, और अल्लाह की उपासना के लिए एकांतमय हो जाता है, रब को राजी करने वाले कार्यों में व्यस्त होकर नाफरमानी और अल्लाह को नाराज कर देने वाले कार्य से बच जाता है, इसलिए हमें भी समय निकाल कर अपने दिल को अल्लाह की इबादत के लिए लगा देना चाहिए।


उमरह यात्रा: अल्लाह के पवित्र घर की जियारत की तमन्ना किसे नहीं होगीी, इसलिए अगर अल्लाह ने धन दौलत दिया है और कोई कठिनाई भी नहीं है तो इस महीने में उमरे की अदायगी का एहतमाम करें और उसके लिए पहले से तैयारी करें, इसकी बड़ी फजीलत और बड़ा सवाब है, हजरत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रजि अल्लाह अन्हुमा ने फरमाया कि सक्षम व्यक्ति पर हज और उमरा वाजिब, है इब्ने अब्बास रजि अल्लाह अन्हुमा ने फरमाया कि किताबउल्लाह में उमरा हज के साथ आया है "और पूरा करो हज और उमरा को अल्लाह के लिए" (बुखारी), हजरत अबू हुरैरा रजि अल्लाह अन्हहु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने फरमाया एक उम्रह के बाद दूसरा अमरा दोनों के दरमियान के गुनाहों का कफ्फाराा है, और हज मबरूर का बदला जन्नत के सिवा कुछ नहीं (बुखारी), यह तो साधारण दिनों की बात है रमजान उल मुबारक में इसकी अहमियत का अंदाजा इस हदीस से होता है कि माहे मुकद्दस में उमरे की अदायगी किस कदर पुण्य एवं सवाब रखती है, अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रजि अल्लाह अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने एक अंसारी महिला (उम्मेे सनान रजि अल्लाह अन्हा) से (इब्ने अब्बास रजि अल्लाह अन्हुमा ने उनका नाम बताया था लेकिन मुझे याद ना रहा) पूछा कि तू हमारे साथ हज क्यों नहीं करती वह कहने लगी कि हमारे पास एक ऊंट था जिस पर अबू फुलाँ (उसका पति) और उसका बेटा सवार होकर हज के लिए चल दिए, और एक ऊंट उन्होंने छोड़ा है जिससे पानी लाया जाता है, आप सल्लल्लाहो सल्लम ने फ़रमाया कि अच्छा जब रमजान आए तो उमरा कर लेना क्योंकि रमजान का उमरा एक हज के बराबर होता है या इस जैसी कोई बात आप सल्लल्लाहो सल्लम ने फ़रमाय (बुखारी)।

रमजान की विशेषताएं एवं प्रमुख उपासनाए

जफर अहमद खान
रमजानुल मुबारक एक पवित्र और बरकत वाला महीना है, इसे बहुत सारी विशेषताएं और कुछ प्रमुख गुण प्राप्त हैं, जिसका अंदाजा प्रेषित मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की हदीस से लगाया जा सकता है, हजरत अबू हुरैरा रजिअल्लाहू अन्हो का वर्णन है कि नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फरमाया "जो व्यक्ति ईमान की अवस्था में पुण्य की नियत से रमजान के रोजे रखता है उसके पिछले पाप बख्श दिए जाते हैं", रमजान का एक-एक क्षण अत्यंत महत्वपूर्ण और सआदतो वाला है, अर्थात अन्य ग्यारह माह मिलकर इसकी बराबरी नहीं कर सकते, अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रमज़ान की अंतिम दस रातों में नमाज़, क़ुर्आन की तिलावत और दुआ में जितना परिश्रम और संघर्षकरते थे उतना परिश्रम संघर्ष उनके अलावा अन्य रातों में नहीं करते थे। इमाम बुखारी और इमाम मुस्लिम ने आइशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत किया है कि : "जब रमज़ान की अंतिम दस रातें प्रवेश करती थीं तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रात को (इबादत करने के लिए) जागते थे औ अपने परिवार को भी (इबादत के लिए) बेदार करते थे और तहबंद कस लेते थे।" (अर्थात संभोग से दूर रहते थे, या इबादत में कड़ा परिश्रम करते थे), तथा अहमद और मुस्लिम की रिवायत में है कि : "आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अंतिम दस रातों में (इबादत करने में) जो परिश्रम और संघर्षकरते थे वह उनके अलावा अन्य रातों में नहीं करते थे।", हम यहां इस पवित्र महीने के अन्तिम अशरे(दस दिनों) की दो महत्वपूर्ण इबादत को संक्षेप में जानने का प्रयास करेंगे इन्शाअल्लाह।

        ऐतिकाफ(एकांतवास): पहली इबादत जो इस महीने के आखिरी दस दिनों में उम्मते मुस्लिमा को प्रदान की गई है उसे ऐतिकाफ कहा जाता है, एतिकाफ का अर्थ है रुकना और ठहरना, अल्लाह की खुशी प्राप्त करने के लिए इबादत, जिक्र अज्कार करने की नियत से विषेश तरीके से एक समय के लिए मस्जिद में ठहरने का नाम एतिकाफ है,  एतकाफ में बैठने वाले को दो हज और एक उमरे का सवाब मिलता है, यह सुन्नते  मुअक्कदा अलल किफाया है, अर्थात कोई एक व्यक्ति एतिकाफ के लिए बैठता है तो सारी आबादी गुनहगार होने से बच जाती है, परंतु अगर किसी मस्जिद की आबादी से कोई एतिकाफ में नहीं बैठता है तो वह पूरी आबादी गुनहगार होती है, एतकाफ में बैठने वाला व्यक्ति फुजूल(बेकार) की बातचीत, खानपान और नींद से दूर रहने का प्रशिक्षण प्राप्त करने के साथ ही अल्लाह की इबादत, कुरान की तिलावत, तौबा की आदत एवं अपने आप को समझने का मौका प्राप्त करता है, और एतकाफ से व्यक्ति गुनाहों से दूर रहता है,

            एतिकाफ हर वक्त सुन्नत है और सबसे बेहतर रमजान के आखिरी दस दिनों में इतिकाफ करना है, क्योंकि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम रमजान के आखिरी दस दिनों में हमेशा एतिकाफ  किया करते थे (जादुल मआद), हजरत आयशा रजि अल्लाह ताला अन्हा फरमाती हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम इस फानी दुनिया से पर्दा फरमाने तक रमजान के आखिरी दस दिनों में ऐतिकाफ किया करते थे और उनके बाद उनकी अज्वाजे मुतह्हरात (पत्नियां) ऐतिकाफ किया करती थी (बुखारीी,  हजरत अबू हुरैरा रजिअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलअल्लाह सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम हर साल रमजान में दस दिन का ऐतिकाफ किया करते थे लेकिन जिस साल आप सल्लल्लाहो वाले वसल्लम  उसदुनिया से पर्दा फरमाया उस साल आप सल्लल्लाहु अलैहि सल्लम ने बीस दिन का ऐतिकाफ किया था (बुखारी),

            अतः जो व्यक्ति रमज़ान की अंतिम दहाई में एतिकाफ करने में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण करना चाहता है तो वह रमज़ान की इक्कीसवीं रात को सूरज डूबने से पहले मस्जिद में प्रवेश कर जाए, ताकि उसमें से कोई चीज़ उस से न छूटने पाए, और ईद की रात सूरज डूबने के बाद बाहर निकले, चाहे महीना पूरा हुआ हो या कम हो गया हो, और सर्वश्रेष्ठ यह है कि वह ईद की रात मस्जिद में ठहरा रहे यहाँ तक कि उसमें ईद की नमाज़ पढ़ ले, या उस से निकल कर ईद की नमाज़ के लिए ईदगाह जाए यदि लोग ईदगाह में नमाज़ पढ़े।

           एतिकाफ की हिकमत यह है कि इसके द्वारा आदमी कुछ समय के लिए दुनिया से कट जाता है, दुनिया और दुनिया वालों के साथ व्यस्तता से बच जाता हैै, और अल्लाह की उपासना के लिए एकांतमय हो जाता है, रब को राजी करने वाले कार्यों में व्यस्त होकर नाफरमानी और अल्लाह को नाराज कर देने वाले कार्य से बच जाता है, इसलिए हमें भी समय निकाल कर अपने दिल को अल्लाह की इबादत के लिए लगा देना चाहिए।

            लैलतुल कद्र: दूसरी इबादत लैलतुल कद्र है, रमजान में एक रात ऐसी आती है जो हज़ार महीनों से बेहतर है, अल्लाह तआला का इर्शाद है, हमने इस(कुरआन) को क़द्र की रात में अवतरित किया, और तुम्हें क्या मालूम कि क़द्र की रात क्या है? क़द्र की रात उत्तम है हज़ार महीनों से, उसमें फ़रिश्तें और रूह (जिब्राइल अलैहिस्सलाम) महत्वपूर्ण मामलें में अपने रब की अनुमति से उतरते है, वह रात पूर्णतः शान्ति और सलामती है, उषाकाल के उदय होने तक(सूरह अल कद्र),

          एक बार रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने सहाबए किराम से बनी इसराइल के कुछ लोगों की बहुत लम्बी आयु तक इबादत करने का ज़िक्र किया, तो सहाबा को ख़याल हुआ कि उनकी आयु ज़्यादा लम्बी होती थीं इसलिए उन्होंने ज़्यादा दिनों तक इबादत की, हमारी उम्रें इतनी नहीं होती हैं इसलिए हम लोग इससे वंचित हैं, तब ये सूरह नाजिल हुई और इसमें बताया गया कि इस उम्मत को ऐसी रात दी गयी है जिस में इबादत करने का सवाब आम हज़ार महीनों की इबादत से ज़्यादा है

           सूरह की अंतिम आयत का अर्थ इस्लामिक विद्वानों ने यह लिखा है कि इस पूरी की पूरी रात में खैरो सलामती है यानि इस रात के जिस लम्हे में भी कोई इबादत करेगा, इंशाअल्लाह इस की फ़ज़ीलत को प्राप्त कर लेगा, यहांतक कि केवल मगरिब और ईशा की नमाज़ भी जमात से पढ़ ले, तब भी शबे क़द्र का अपना हिस्सा ज़रूर पायेगा और फिर इस रात की सलामती सुबह होने तक रहती है,

          नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ईमान के साथ और अज्र व सवाब (पुण्य) की नीयत से क़द्र की रात (शबे क़द्र) को क़ियाम करने (अर्थात इबादत में बिताने) पर उभारा और बल दिया है, अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आप ने फरमाया : "जिस व्यक्ति ने ईमान के साथ और अज्र व सवाब की आशा रखते हुए लैलतुल क़द्र को क़ियामुल्लैल किया (अर्थात् अल्लाह की इबादत में बिताया) तो उसके पिछले गुनाह क्षमा कर दिए जायेंगे।" (सहीह बुखारी व मुस्लिम)

          हजरत अनस रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रमजान मुबारक के आगमन पर एक मर्तबा रसूले पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया यह जो महीना तुम पर आया है इसमें एक रात ऐसी है जो हजार महीनों से अफजल है जो जो व्यक्ति इस रात से वंचित रह गया तो गया वह सारे ही भलाई उसे वंचित रहा और इस रात की भलाई से वही व्यक्ति वंचित रह सकता है जो वास्तव में वंचित हो, (इब्ने माजह), लैलतुल क़द्र रमज़ान की आख़िरी दस दिनों की ताक़ रातों में से किसी एक रात में होती है, अतः 21, 23, 25, 27, या 29 वीं रात में इबादत करके इसे पाने का प्रयत्न करना चाहिए, इस रात में फ़रिश्ते भी आसमान से ज़मीन पर उतरते हैं और फरिश्तों के उतरने के दो मक़सद होते हैं एक ये कि इस रात में जो लोग इबादत में लगे हुए हैं तो फ़रिश्ते उनके हक में रहमत की दुआ करते हैं और दूसरा मक़सद आयते करीमा में ये बताया गया है कि अल्लाह तआला इस रात में साल भर के फैसले फरिश्तों के हवाले फरमा देते हैं, ताकि वो लोग अपने अपने वक़्त पर उन कामों को करते रहें।

अंतिम अशरे(दस दिनों) की दो महत्वपूर्ण इबादते

लेख : ज़ैनुल आबिदीन नदवी
अनुवादक : मो साबिर हुसैन नदवी पूर्णिया बिहार
औरंगाबाद से भुसावल तक पैदल यात्रा करने वाले वह मज़दूर यह आस लगाए चले थे कि वहाँ से एक ट्रेन मध्य प्रदेश जाएगी, जो उन्हें अपनी मातृभूमि ले जाएगी और वे सभी अपनी मातृभूमि की खुशबू को सूँघ सकेंगे। उम्मीदौं से भरा यह क़ाफिला चल पड़ा जिसे न शोहरत की तलाश थी न वह ओहदा वह मनस़ब के ख़ाहिश मन्द थे, उनहैं तो  पेट के भूख की  आग ने घर से बाहर निकलने पर वि्वश कर दिया था, लेकिन शायद उन्हें इसका एहसास भी नहीं था कि भारत सरकार,का  कुप्रबंधन उन्हें मौत का कड़वा घूंट  पीने पर मजबूर करदेगा। फिर यह हुआ कि यह थका हारा काफ़िला  रात को कमर सीधी करने के लिए रेल की पटरियों पर ही सो गया, कियौं कि वह जान रहे थे कि ट्रेनें बंद हैं ,लेकिन अचानक मालगाड़ी के हाई-स्पीड कोच कारवां को रौंदते हुए गुज़र गए ,और 17 लोगों के कारवां ने उसी समय अपने जीवन की आख़री सांस ली और इस नश्वरता से विदा हो गए, यह वह कारवां था जो अपनी मेहनत से देश को कहीं न कहीं कुछ हद तक मजबूत कर रहा था, जिनके अपने सिर का साया आकाश की छाया के अलावा कुछ नहीं था, लेकिन उन्होंने बहुतों को छाया प्रदान किया था , इस दुर्घटना ने मेरे दिल को दहला कर रख दिया ,और हर विवेक व्यक्ति का दिल कांप उठा,
इन श्रमिकों की मृत्यु के लिए कौन जिम्मेदार है?  उनके साथ यह दुर्घटना क्यों हुई?  कारण और कारक क्या हैं?  अगर इन बातों को थोड़ी गंभीरता से लिया जाए और समझने की कोशिश की जाए, तो जिम्मेदारी किसी और की नहीं, बल्कि भारत सरकार की है, जिसे देश वासियों से सहानुभूति नाम की कोई चीज नहीं है,,भुखमरी से मरने वालों, दुर्घटनाओं में मरने वालों ,आत्महत्याओं की संख्या क्यों नहीं गिनी जाती?  जबकि इसके विपरीत, सभी प्रकार के रोगों से पीड़ित व्यक्ति को यह दावा करते हुए कि वह कोरोना से प्रभावित है, देश में तांडव मचा रखा है आख़िर यह करोना भी किया तमाशा है ,जिस से मरने वालों का तो कुछ पता नहीं जबकि इनडायरेक्ट इस से मरने वालों की संख्या इस से कई गुना ज्यादा हो चुकी है,
 हैरानी की बात है कि इस विषय पर जिस से भी बात की जाती है वह  हैरानी व्यक्त करता है, लेकिन कोई भी इस तमाशा के खिलाफ बोलने के लिए आगे क्यों नहीं आता है?  इन घटनाओं को गंभीरता से लेने और सरकार को विवेकता पुरवक सोचने के लिए मजबूर करने की आवश्यकता है, अन्यथा इसका नुकसान असहनीय होगा, जितनी अधिक देरी होगी, कठिनाइयां उतनी ही अधिक होंगी,
 बद नस़ीबी किया किया सब ख़्वाब धुंधले हो गए
टुकड़े टुकड़े जोड़ने वालौं के टुकड़े हो गए......

टुकड़े टुकड़े जोड़ने वालौं के टुकड़े हो गए ...........

लेख:मो कमर अंजुम कादरी फैजी
यूं तो सारे महीने अल्लाह के  हैं। और वक्त का पहिया उसके ही इशारों से चलता है। मगर जो आदर सत्कार रमज़ान के महीने को हासिल है वह आदर सम्मान किसी दूसरे महीने को नहीं मिला है।
इस माह में मुसलमान अपने खुदा के लिए रोज़ा रखते हैं। ज्यादा से ज्यादा नमाज़े पढते हैं|और किताबों में रोज़े की बहुत ज्यादा फजीलत और उसके फायदे बताये गये है

 दूनिया मे कोई भी मुसलमान जब कोई नेक और अच्छा काम करते हैं तो उसका सवाब बहुत ज्यादा मिलता है मगर रोज़े का सवाब खुद अल्लाह देता है।
हजरत मुहम्मद साहब ने कहा है कि ऐ लोगो तुम्हारे बीच जो महीना आया है यह वह महीना है जिसमें जो कोई नफल ईबादत के जरिए अल्लाह से नजदीकी हासिल करना चाहता है तो वह ऐसा है जैसे रमज़ान के अलावा दूसरे महीने में सत्तर 70 फर्ज अदा किये जायें. इसका मतलब यह है कि रमज़ान में एक नेकी का सवाब सत्तर 70 मिलता है जबकि और दूसरे दिनों में ऐक नेकी का सवाब ऐक ही मिलता है।
रमज़ान के महीने में किसी गरीब और मजदूर लोगों को अफतारी करवाने पर बहुत ही ज्यादा नेकीयां मिलती हैं।
अल्लाह पाक ने इसी महीने में कूराने मजीद को आसमान से धरती पर उतारा| कूरान मुसलमानों की सबसे बड़ी किताब है। जो लोगों को फायदा देती है|

ओर कोई मूसलमान रोज़े के नाम पर दिन भर सिर्फ
खाना पीना छोड दे  लेकिन अपनी बूरी आदतें
न छोडे पाबंदी से नमाज न पढ़े उसका रोज़ा
रखना न रखने के बराबर है । येह लोग बेकार में
भूके - प्यासे रहते हैं । इनका रोज़ा खुदा के यहाँ
में नेकी और सवाब की किताब में जमा होने के लिए
बजाए रब् की नाफरमानी की महोर लगाकर
कचरे की पेटी में दाल दिया जायेगा।
अल्लाह का करोड़ करोड़ एह़सान हैं कि ये रमज़ानुल मुबारक हमने अपनी ज़िन्दगी में पाया! भले ही इस बार के रोज़े बहुत शदीद गर्मी में आए हैं मगर इस गर्मी से ड़रकर रोज़े मत छोड़ देना, क्या पता अगला रमज़ान नसीब होगा भी या नही?

और ये ख़याल मत करना कि 'इस साल गर्मी ज़्यादा हैं मगर अगली साल रोज़े ज़रूर रखेंगे' हां, अगर ज़िन्दगी बाक़ी रही तो ज़रूर रखेंगे लेकिन ज़िन्दगी का कोई भरोसा नही कि अगले माहे रमज़ान तक हम ज़िन्दा रहे!
इसलिए ये ख़याल करो कि इस बार गर्मी ज़्यादा है तो क्या हुआ मेरा रब  मुझे सवाब भी बहुत ज्यादा देगा।
अल्लाह के जो नेक बन्दे होते हैं वो ये जानते हैं कि क़यामत की गरमी के आगे दुनिया की गरमी कुछ भी नही और वो अपने रब  को राज़ी करने के लिए मुश्किल से मुश्किल नेकी भी कभी नही छोड़ते!
इस लिए हमें माहे रमज़ानुल मुबारक का आदर और सम्मान करते रहना चाहिए।

रमज़ान साल भर में एक बार आता है

Sunday, May 3, 2020

ज़फर अहमद खान 
छिबरा, धर्मसिंहवा बाजार, सन्त कबीर नगर, उ.प्र.
भारत में मुस्लिमों पर बढ़ते दमन और हिंसा, घृणा, और सरकार द्वारा दोहरा मानक अपनाए जाने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंताएं जारी है, और देश की छवि खराब हो रही है, पहले खाड़ी देशों और अब वैश्विक स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता पर नजर रखने वाला अमेरिकी आयोग यूनाइटेड कमीशन आन इन्टरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF) ने विदेश विभाग से चौदह देशों सहित, भारत, को 'विशेष चिंता का देश' के रूप में दर्ज करने के लिए कहा है और आरोप लगाया है कि इन देशों में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं, अमेरिकी आयोग की घोषणा के अनुसार 2019 की रिपोर्ट में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के मानचित्र में तेजी से नीचे आया, रिपोर्ट में नागरिकता संशोधन कानून पर तीव्र आलोचना की है, रिपोर्ट कह रही है कि 2019 में भारत में अल्पसंख्यकों पर हमलों में वृद्धि हुई, रिपोर्ट में बाबरी मस्जिद से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की भी आलोचना की गई है , और इस के साथ-साथ कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने तथा उस की स्वायत्तता को समाप्त करने के लिए भारत की गंभीर आलोचना की है, और अगर ट्रम्प सरकार ने आयोग की सिफारिशों को मान्यता दी सरकार के लिए कई प्रकार की कठिनाइयां खड़का हो सकती हैं, और देश के खिलाफ कई तरह के प्रतिबंध लागू किये जा सकते है, यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिष्ठा क्षतिग्रस्त होने का डर है। 

विशेष चिंता वाले देशों की सूची में भारत का नाम डालने के संयुक्त राज्य अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की सिफारिश को भारत सरकार ने खारिज करते हुए कमीशन के बयान को , तटस्थ एवं गैर-पारदर्शी करार दिया है, हालांकि सरकार तथ्यों को छुपा नहीं सकती, वैश्विक समाचार एजेंसियों द्वारा सामने आने वाले वीडियो दृश्यों से यह स्पष्ट है कि मुसलमानों पर जबरन के बल पर दमन किया गया है । आयोग की सिफारिशों पर सरकार की यह प्रतिक्रिया अप्रत्याशित नहीं है, सार्वजनिक रूप से वे  इसे स्वीकार नहीं कर सकती , क्योंकि यह सिफारिशें उस के खिलाफ हैं, उन्हें वहीं इस से सरकार और देश दोनों की छवि खराब होने का डर है , हालांकि उसी अमेरिका की टाइम पत्रिका ने वर्ष 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए पर्सन आफ द ईयर की घोषणा की थी, वह पहले स्थान पर थे जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा दूसरे नंबर पर थे, दूसरा, उस समय बहुत खुश और उत्साहित नज़र आ रहे थे और मोदी को पूरी दुनिया वैश्विक नेता के रूप में में, जबकि भारत को विश्वगुरु के रूप में प्रस्तुत करते नहीं थकते थे, लेकिन उसी पत्रिका ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को "इन्डियाज डिवाइडर -इन-चीफ" अर्थात् भारत को विभाजित करने वाला व्यक्ति घोषित किया तो सरकार ने इस लेख के लेखक आतिश तासीर की प्रभावशीलता के रूप में 'प्रवासी भारतीय' नागरिकता रद्द कर दिया था। 
सरकार ने कमीशन की सिफारिशों को मानने से इनकार करते हुए गैर पारदर्शी करार तो दे दिया, लेकिन क्या यह सत्य नहीं है कि बीते दिनों देश में मॉब लिंचिंग के सबसे ज्यादा शिकार मुसलमान ही हुए हैं, कहीं गौ रक्षा के नाम पर तो कहीं हिंदुत्व की रक्षा के नाम पर, कहीं बच्चा चोरी के नाम पर तो कहीं लव जिहाद के नाम पर इससे पीड़ित हुए हैं, ऐसा नहीं है कि केवल मुसलमान ही इस मामले का शिकार हुए हैं बल्कि इसके अतिरिक्त यहां के दूसरे नागरिक भी इसका शिकार हुए हैं, परंतु सत्य यही है कि मुसलमानों की एक बड़ी संख्या इसका शिकार हुई है, अभी जल्द ही की बात है दिल्ली के मदन मोहन मालवीय अस्पताल ने कुछ मुस्लिम महिलाओं का उपचार करने से यह कहकर इंकार कर दिया कि तुम मुसलमान हो जमात में जाते हो इसलिए हम तुम्हारा इलाज नहीं करेंगे,  मिल्लत टाइम के अनुसार यह मामला बीते एक सप्ताह पूर्व दिल्ली के सरकारी अस्पताल मदन मोहन मालवीय में पेश आया है, खानपुर की रहने वाली जैनब ने मिल्लत टाइम से फोन पर बात करते हुए कहा कि मदन मोहन मालवीय अस्पताल में मेरा इलाज चल रहा है, मैं गर्भवती हूं और हर तीन सप्ताह पर बुलाया जाता, है बृहस्पतिवार 15 अप्रैल को मैं वहां गई, रिसेप्शन से मेरी पर्ची भी कट गई और मैं लाइन में लग, गई नंबर आने के बाद जब मैं डॉक्टर के चेंबर में गई तू वहां एक लेडी डॉक्टर थी और मैंने बुर्का पहन रखा था, डॉक्टर ने मुझे देखते ही कहा वही रुक जाओ तुम लोग जमात में जाते हो और करोना फैलाते, हो मैंने कहा कि मैं जमात में नहीं जाती हूं और ना मेरे घर में कोई जाता है, डॉक्टर ने कहा तुम लोग जाओ तुम्हारा इलाज नहीं होगा हम तुम्हें नहीं देखेंगे, जैनब ने बताया कि उसने डॉक्टर से निवेदन किया कि कम से कम दवा लिख दीजिए, लेकिन इससे भी इंकार कर दिया, जैनब के अनुसार वहां और भी कई मुस्लिम महिलाएं थीं जिनका इलाज करने से डॉक्टर ने यही सब कहते हुए साफ इनकार कर दिया।

देवरिया के बरहज विधानसभा क्षेत्र से विधायक सुरेश तिवारी की इस बात से कौन ना वाकिफ है जो सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में सुना जा रहा है, जिसमें वह कुछ सरकारी अधिकारियों के साथ अन्य कुछ लोगों से कह रहे हैं एक बात ध्यान से सुनो और दिमाग में बिठा लो, मैं सभी लोग को खुले तौर पर बता रहा हूं कोई भी मुसलमानों से सब्जियां ना खरीदें, एवं बीजेपी के एक दूसरे विधायक द्वारा गली मोहल्लों से मुस्लिम सब्जी बेचने वालों को भगाने और धमकी देने का मामला किसी से छुपा नहीं है, ज्ञात हो कि लखनऊ के गोमती नगर में अपने आवासीय कॉलोनी में ठेले पर सब्जी तरकारी बेचने वाले व्यक्ति से महोबा जिले के चरखारी विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के विधायक बृजभूषण और सोसाइटी के अन्य व्यक्ति नाम पूछते हैं, डरे हुए सब्जी विक्रेता द्वारा अपना नाम राजकुमार बताने पर उस पर झूठ बोलने का इल्जाम लगाते हैं उसे मारने पीटने और सोसाइटी से बाहर निकालने की धमकी देते हैं, अपनी इस हरकत को सही ठहराते हुए बीजेपी लीडर राजपूत ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि सब्जी विक्रेता मुसलमान था मगर हिंदू बनकर सब्जी बेच रहा था, इससे पहले हरियाणा के कैथल विधानसभा से बीजेपी विधायक लीलाराम गुर्जर ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था, "आज यह जवाहरलाल नेहरू का हिंदुस्तान नहीं आज यह गांधी वाला हिंदुस्तान नहीं अब यह हिंदुस्तान नरेंद्र मोदी जी का है अगर इशारा हो गया ना एक घंटे में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों का सफाया कर देंगे"। 

दिल्ली चुनाव के दौरान मोदी सरकार में मंत्री अनुराग ठाकुर ने तो इशारों इशारों में गद्दार बताकर गोली मारने के नारे भी लगवाए, और दिल्ली से बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा ने तो और आगे जाकर यहां तक कह दिया कि शाहीन बाग के लोग दिल्ली में लोगों के घरों में घुसकर रेप करेंगे, उनसे बचना है तो बीजेपी को वोट करो, इसके अतिरिक्त उन्होंने सरकारी भूमि पर बनी समस्त मसाजिद को तोड़ने का ऐलान भी कर दिया, वोटों के पोलराइजेशन में सबसे आगे रहने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने अपना पुराना राग अलापते हुए कहा कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तो शाहीन बाग वालों को बिरयानी खिला रही हैं, मगर हम पहले बोली से समझाते हैं और नहीं माने तो फिर उनको हमारी पुलिस गोली से समझाती है, कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी के नेता और विधायक रेणुकाचार्य ने नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में बुलाई गई रैली में संबोधित करते हुए कहा था वह लोग मस्जिद में नमाज पढ़ने की जगह हथियार इकट्ठा करने का काम करते, हैं यहां कुछ गद्दारे वतन है, तुम लोग मस्जिद में बैठते हो और फतवे लिखते हो, मस्जिद में क्या है? वहां पर हथियार इकट्ठा किए जाते हैं क्या इसलिए मस्जिद चाहते हो? अगर तुम्हें ऐसा ही करना है तो ठीक है मैं अपनी राजनीति करता रहूंगा, यह भी कहा कि मैं मुसलमानों के लिए  दिए गए बजट का  हिंदुओं के काम के लिए खर्च करने से बिल्कुल नहीं पीछे हटूगा, उप्रयुक और इस प्रकार की अन्य घटनाओं में उचित कार्रवाई न करने और निष्पक्षता से काम न लेने के कारण जहां देश में स्थिति तेजी से खराब हो रही है वहाँ  ऎसा करने वालों का हौसला भी बढ़ रहा है , और यह समझ से ऊपर है कि उन में इस तरह की घृणा कहाँ से आती है, और इस तरह की घृणा फैलाने के लिए उन्हें बल कहां से मिलता है, जाहिर है कि उनकी पीठ थपथपा ने वाले अवश्य कोई न कोई तत्व है, तो क्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवाज बुलंद होने के पश्चात भी उन्हें देश की बदनामी का कोई डर नहीं रहा? क्या उनके दिलों में इस बात का एहसास भी नहीं रहा कि इस तरह की घटनाओं से हमारे देश की छवि  विश्व स्तर खराब हो रही है?। 

अब अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी साहब क्या यह बताने की कृपा करेंगे कि मुसलमानों के लिए कौन सा भारत स्वर्ग के समान है जहां उनके अधिकार सुरक्षित हैं, और सेक्युलरिज्म और भाईचारा किस भारत और कौन से भारतीय नागरिकों के लिए (पॉलिटिकल फैशन) राजनीतिक फैशन नहीं बल्कि परफेक्ट फैशन (जुनून) है, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओआईसी और खाड़ी देशों के कुछ विद्वानों और पत्रकारों द्वारा देश में इस्लामोफोबिया और मुस्लिम विरोधी माहौल पर गहरी चिंता जताने के बाद ट्विटर पर अपने एक संदेश में बिल्कुल सही कहा था, कोविड-19 किसी पर हमला करते वक्त उसकी नस्ल धर्म रंग जात भाषा और उसकी सीमा नहीं देखता, लेकिन क्या यह सत्य नहीं है कि देश के सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी की ओर से मुस्लिम विरोधी प्रोपैगेडो की सराहना और टीवी चैनल द्वारा उसे अधिक बल एवं सपोर्ट दिए जाने के आंदोलन ने देश की जनता के बीच खाई को और अधिक बढ़ाने तथा मुल्क की छवि खराब करने का काम नहीं किया है? क्या देश में इस तरह का वातावरण नहीं बनाया गया कि करोना केवल मुसलमानों के कारण फैल रहा है? क्या राजनीतिक नेताओं और अन्य चैनल्स ने ऐसा वातावरण नहीं बनाया कि मुसलमानों का इस वायरस को फैलाने का कारण हिंदुओं को मारना है? सोशल मीडिया पर मुस्लिम विरोधी पोस्ट लगाकर उनके दिलों में मुसलमानों के खिलाफ जहर घोलने वाले क्या देश की छवि खराब करने के जिम्मेदार नहीं हैं? क्या कोरोना के बहाने मुसलमानों को जेलों और कुरनटाइन केंद्रों में स्थानांतरित नहीं किया जा रहा है? क्या पुलिस जबरदस्ती कोरोनावायरस का रोगी बनाकर जेलों में नहीं ले जा रही है, सूचना एवं प्रसारण संस्थाओं ने तबलीगी जमात व अन्य मुसलमानों पर कोरोना जेहाद का इल्जाम नहीं लगाया? क्या मीडिया और सोशल मीडिया पर नकारात्मक एजेंडे के ध्वज धारकों ने नहीं कहा था कि नई दिल्ली में निजामुद्दीन के इलाके में स्थित तबलिगही जमात के मरकज में मुसलमान देश में करोना फैलाने की साजिश के अन्तर्गत इकट्ठा हुए थे, क्या यह किसी से छुपा है कि लाकडाउन की अवहेलना करने का जिम्मेदार तबलीगी जमात को ठहराया जा रहा है? और यह कौन नहीं जानता कि स्वयं सरकार, राजनीतिक दलों एवं अन्य धार्मिक संगठनों की ओर से लाकडाउन और कोरोना वायरस से संबंधित कानूनों का उल्लंघन किया गया है? क्या कुछ स्थानों पर दिहाड़ी मजदूरों में खाने-पीने की वस्तुएं वितरण करने वाले मुसलमानों पर हमले नहीं किए गए? कोरोना जैसी महामारी के दौरान भी शांतिपूर्ण CAA/NRC के धरनो के अंतर अंतर्गत विगत चंद दिनों में दिल्ली में सैकड़ों नौजवानों विधार्थी नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी ओं को क्या दुनिया ने नहीं देखा।

उपर्युक्त घटनाओं लोगों और नेताओं की कथन को चिन्हित किए जाने के बाद यह बात स्पष्ट रूप से सामने आती है कि विश्व में भारत की छवि खराब करने और उसकी साख को गिराने का जिम्मेदार कौन है, अतः सरकार को चाहिए कि ऐसे लोगों और नेताओं के नफरत फैलाने पर केवल ट्वीट का लाली पाप न देकर उनके विरुद्ध कडी एवं त्वरित कार्रवाई की जाए, ताकि देश में अमन व शांति का वातावरण स्थापित हो सके,  एवं समस्त भारतीय नागरिक शांति से जी सकें, और हमारे प्रधानमंत्री वास्तव में एक विश्व नेता बनकर सामने आए, तथा सचमुच हिंदुस्तान विश्व गुरु बन सके। 

देश की छवि कौन खराब कर रहा है

Saturday, May 2, 2020

लेखक। सलमान कबीर नगरी। एटीटर सह माही।मैग्ज़ीन नई रोशनि बरैनियां। सन्त कबीर नगर यूपी

रमजान उल मुबारक सब्र का महिना है और सब्र का सिला जनतंत्र है। यह पवित्र महीना जिसकी अजमत का अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता। इस मुकद्दस माह में दान करने भूखे को खाना खिलाने रोजेदार को इफतार कराने से सवाब मिलता है। रमजान उल मुबारक को तीन अशरों में बांटा गया है। पहला अशरा रहमत का है। पैगम्बरे इस्लाम ने कहा है कि अगर लोगों को रमजान की अहमियत व फजीलत का पता चल जाये तो सब लोग यही तमन्ना करें कि काश पुरा साल रमजान हो जाये। रमजान उल मुबारक स्वागत के लिये पुरे साल जनतंत्र को सजाया जाता है। पैगम्बरे इस्लाम ने कहा है कि इस माह में भूखे को खाना खिलायेगा या रोजेदार को इफतार करायेगा तो उसको जमीन भर सोना दान करने का सवाब मेलेगा।रोजादारों को कभी ज़ह्नम की आग ना जला सकेगी। सब से खास बात यह है कि रमजान एक भट्टि तरह है जिस प्रकार भट्टि गंदे लोहे साफ कर मशीन का पुर्जा बना देती है सोने को तपा कर आभुषण बना कर उपयोग के लायक बना देता है। उसी तरह रमजान भी बनादों को गुनाहों से पाक साफ करके जिन्दगी जिने के लाएक बना देता है
लाक टाउन में अपने आस पास के लोगों का खयाल कयना भी सब मुसलमानों की जीम्दारी है। रमजान उल मुबारक में दान करना बहूत अजर का हामील है। दान अल्लाह के गुस्सा को टनंटा करता है। अपनी खुशियों मे से थोड़ी खुशियां गरीब लोगों में बांट दें और उस रमजान में अल्लाह तआला की बे शुमार बरकतैं अपने आमाल नामें में दर्ज करायं

रमज़ान मे करने के काम