Sunday, May 3, 2020

देश की छवि कौन खराब कर रहा है

ज़फर अहमद खान 
छिबरा, धर्मसिंहवा बाजार, सन्त कबीर नगर, उ.प्र.
भारत में मुस्लिमों पर बढ़ते दमन और हिंसा, घृणा, और सरकार द्वारा दोहरा मानक अपनाए जाने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंताएं जारी है, और देश की छवि खराब हो रही है, पहले खाड़ी देशों और अब वैश्विक स्तर पर धार्मिक स्वतंत्रता पर नजर रखने वाला अमेरिकी आयोग यूनाइटेड कमीशन आन इन्टरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (USCIRF) ने विदेश विभाग से चौदह देशों सहित, भारत, को 'विशेष चिंता का देश' के रूप में दर्ज करने के लिए कहा है और आरोप लगाया है कि इन देशों में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं, अमेरिकी आयोग की घोषणा के अनुसार 2019 की रिपोर्ट में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के मानचित्र में तेजी से नीचे आया, रिपोर्ट में नागरिकता संशोधन कानून पर तीव्र आलोचना की है, रिपोर्ट कह रही है कि 2019 में भारत में अल्पसंख्यकों पर हमलों में वृद्धि हुई, रिपोर्ट में बाबरी मस्जिद से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की भी आलोचना की गई है , और इस के साथ-साथ कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने तथा उस की स्वायत्तता को समाप्त करने के लिए भारत की गंभीर आलोचना की है, और अगर ट्रम्प सरकार ने आयोग की सिफारिशों को मान्यता दी सरकार के लिए कई प्रकार की कठिनाइयां खड़का हो सकती हैं, और देश के खिलाफ कई तरह के प्रतिबंध लागू किये जा सकते है, यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिष्ठा क्षतिग्रस्त होने का डर है। 

विशेष चिंता वाले देशों की सूची में भारत का नाम डालने के संयुक्त राज्य अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग की सिफारिश को भारत सरकार ने खारिज करते हुए कमीशन के बयान को , तटस्थ एवं गैर-पारदर्शी करार दिया है, हालांकि सरकार तथ्यों को छुपा नहीं सकती, वैश्विक समाचार एजेंसियों द्वारा सामने आने वाले वीडियो दृश्यों से यह स्पष्ट है कि मुसलमानों पर जबरन के बल पर दमन किया गया है । आयोग की सिफारिशों पर सरकार की यह प्रतिक्रिया अप्रत्याशित नहीं है, सार्वजनिक रूप से वे  इसे स्वीकार नहीं कर सकती , क्योंकि यह सिफारिशें उस के खिलाफ हैं, उन्हें वहीं इस से सरकार और देश दोनों की छवि खराब होने का डर है , हालांकि उसी अमेरिका की टाइम पत्रिका ने वर्ष 2016 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए पर्सन आफ द ईयर की घोषणा की थी, वह पहले स्थान पर थे जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा दूसरे नंबर पर थे, दूसरा, उस समय बहुत खुश और उत्साहित नज़र आ रहे थे और मोदी को पूरी दुनिया वैश्विक नेता के रूप में में, जबकि भारत को विश्वगुरु के रूप में प्रस्तुत करते नहीं थकते थे, लेकिन उसी पत्रिका ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को "इन्डियाज डिवाइडर -इन-चीफ" अर्थात् भारत को विभाजित करने वाला व्यक्ति घोषित किया तो सरकार ने इस लेख के लेखक आतिश तासीर की प्रभावशीलता के रूप में 'प्रवासी भारतीय' नागरिकता रद्द कर दिया था। 
सरकार ने कमीशन की सिफारिशों को मानने से इनकार करते हुए गैर पारदर्शी करार तो दे दिया, लेकिन क्या यह सत्य नहीं है कि बीते दिनों देश में मॉब लिंचिंग के सबसे ज्यादा शिकार मुसलमान ही हुए हैं, कहीं गौ रक्षा के नाम पर तो कहीं हिंदुत्व की रक्षा के नाम पर, कहीं बच्चा चोरी के नाम पर तो कहीं लव जिहाद के नाम पर इससे पीड़ित हुए हैं, ऐसा नहीं है कि केवल मुसलमान ही इस मामले का शिकार हुए हैं बल्कि इसके अतिरिक्त यहां के दूसरे नागरिक भी इसका शिकार हुए हैं, परंतु सत्य यही है कि मुसलमानों की एक बड़ी संख्या इसका शिकार हुई है, अभी जल्द ही की बात है दिल्ली के मदन मोहन मालवीय अस्पताल ने कुछ मुस्लिम महिलाओं का उपचार करने से यह कहकर इंकार कर दिया कि तुम मुसलमान हो जमात में जाते हो इसलिए हम तुम्हारा इलाज नहीं करेंगे,  मिल्लत टाइम के अनुसार यह मामला बीते एक सप्ताह पूर्व दिल्ली के सरकारी अस्पताल मदन मोहन मालवीय में पेश आया है, खानपुर की रहने वाली जैनब ने मिल्लत टाइम से फोन पर बात करते हुए कहा कि मदन मोहन मालवीय अस्पताल में मेरा इलाज चल रहा है, मैं गर्भवती हूं और हर तीन सप्ताह पर बुलाया जाता, है बृहस्पतिवार 15 अप्रैल को मैं वहां गई, रिसेप्शन से मेरी पर्ची भी कट गई और मैं लाइन में लग, गई नंबर आने के बाद जब मैं डॉक्टर के चेंबर में गई तू वहां एक लेडी डॉक्टर थी और मैंने बुर्का पहन रखा था, डॉक्टर ने मुझे देखते ही कहा वही रुक जाओ तुम लोग जमात में जाते हो और करोना फैलाते, हो मैंने कहा कि मैं जमात में नहीं जाती हूं और ना मेरे घर में कोई जाता है, डॉक्टर ने कहा तुम लोग जाओ तुम्हारा इलाज नहीं होगा हम तुम्हें नहीं देखेंगे, जैनब ने बताया कि उसने डॉक्टर से निवेदन किया कि कम से कम दवा लिख दीजिए, लेकिन इससे भी इंकार कर दिया, जैनब के अनुसार वहां और भी कई मुस्लिम महिलाएं थीं जिनका इलाज करने से डॉक्टर ने यही सब कहते हुए साफ इनकार कर दिया।

देवरिया के बरहज विधानसभा क्षेत्र से विधायक सुरेश तिवारी की इस बात से कौन ना वाकिफ है जो सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में सुना जा रहा है, जिसमें वह कुछ सरकारी अधिकारियों के साथ अन्य कुछ लोगों से कह रहे हैं एक बात ध्यान से सुनो और दिमाग में बिठा लो, मैं सभी लोग को खुले तौर पर बता रहा हूं कोई भी मुसलमानों से सब्जियां ना खरीदें, एवं बीजेपी के एक दूसरे विधायक द्वारा गली मोहल्लों से मुस्लिम सब्जी बेचने वालों को भगाने और धमकी देने का मामला किसी से छुपा नहीं है, ज्ञात हो कि लखनऊ के गोमती नगर में अपने आवासीय कॉलोनी में ठेले पर सब्जी तरकारी बेचने वाले व्यक्ति से महोबा जिले के चरखारी विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी के विधायक बृजभूषण और सोसाइटी के अन्य व्यक्ति नाम पूछते हैं, डरे हुए सब्जी विक्रेता द्वारा अपना नाम राजकुमार बताने पर उस पर झूठ बोलने का इल्जाम लगाते हैं उसे मारने पीटने और सोसाइटी से बाहर निकालने की धमकी देते हैं, अपनी इस हरकत को सही ठहराते हुए बीजेपी लीडर राजपूत ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि सब्जी विक्रेता मुसलमान था मगर हिंदू बनकर सब्जी बेच रहा था, इससे पहले हरियाणा के कैथल विधानसभा से बीजेपी विधायक लीलाराम गुर्जर ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था, "आज यह जवाहरलाल नेहरू का हिंदुस्तान नहीं आज यह गांधी वाला हिंदुस्तान नहीं अब यह हिंदुस्तान नरेंद्र मोदी जी का है अगर इशारा हो गया ना एक घंटे में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों का सफाया कर देंगे"। 

दिल्ली चुनाव के दौरान मोदी सरकार में मंत्री अनुराग ठाकुर ने तो इशारों इशारों में गद्दार बताकर गोली मारने के नारे भी लगवाए, और दिल्ली से बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा ने तो और आगे जाकर यहां तक कह दिया कि शाहीन बाग के लोग दिल्ली में लोगों के घरों में घुसकर रेप करेंगे, उनसे बचना है तो बीजेपी को वोट करो, इसके अतिरिक्त उन्होंने सरकारी भूमि पर बनी समस्त मसाजिद को तोड़ने का ऐलान भी कर दिया, वोटों के पोलराइजेशन में सबसे आगे रहने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने अपना पुराना राग अलापते हुए कहा कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तो शाहीन बाग वालों को बिरयानी खिला रही हैं, मगर हम पहले बोली से समझाते हैं और नहीं माने तो फिर उनको हमारी पुलिस गोली से समझाती है, कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी के नेता और विधायक रेणुकाचार्य ने नागरिकता संशोधन कानून के समर्थन में बुलाई गई रैली में संबोधित करते हुए कहा था वह लोग मस्जिद में नमाज पढ़ने की जगह हथियार इकट्ठा करने का काम करते, हैं यहां कुछ गद्दारे वतन है, तुम लोग मस्जिद में बैठते हो और फतवे लिखते हो, मस्जिद में क्या है? वहां पर हथियार इकट्ठा किए जाते हैं क्या इसलिए मस्जिद चाहते हो? अगर तुम्हें ऐसा ही करना है तो ठीक है मैं अपनी राजनीति करता रहूंगा, यह भी कहा कि मैं मुसलमानों के लिए  दिए गए बजट का  हिंदुओं के काम के लिए खर्च करने से बिल्कुल नहीं पीछे हटूगा, उप्रयुक और इस प्रकार की अन्य घटनाओं में उचित कार्रवाई न करने और निष्पक्षता से काम न लेने के कारण जहां देश में स्थिति तेजी से खराब हो रही है वहाँ  ऎसा करने वालों का हौसला भी बढ़ रहा है , और यह समझ से ऊपर है कि उन में इस तरह की घृणा कहाँ से आती है, और इस तरह की घृणा फैलाने के लिए उन्हें बल कहां से मिलता है, जाहिर है कि उनकी पीठ थपथपा ने वाले अवश्य कोई न कोई तत्व है, तो क्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आवाज बुलंद होने के पश्चात भी उन्हें देश की बदनामी का कोई डर नहीं रहा? क्या उनके दिलों में इस बात का एहसास भी नहीं रहा कि इस तरह की घटनाओं से हमारे देश की छवि  विश्व स्तर खराब हो रही है?। 

अब अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी साहब क्या यह बताने की कृपा करेंगे कि मुसलमानों के लिए कौन सा भारत स्वर्ग के समान है जहां उनके अधिकार सुरक्षित हैं, और सेक्युलरिज्म और भाईचारा किस भारत और कौन से भारतीय नागरिकों के लिए (पॉलिटिकल फैशन) राजनीतिक फैशन नहीं बल्कि परफेक्ट फैशन (जुनून) है, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओआईसी और खाड़ी देशों के कुछ विद्वानों और पत्रकारों द्वारा देश में इस्लामोफोबिया और मुस्लिम विरोधी माहौल पर गहरी चिंता जताने के बाद ट्विटर पर अपने एक संदेश में बिल्कुल सही कहा था, कोविड-19 किसी पर हमला करते वक्त उसकी नस्ल धर्म रंग जात भाषा और उसकी सीमा नहीं देखता, लेकिन क्या यह सत्य नहीं है कि देश के सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी की ओर से मुस्लिम विरोधी प्रोपैगेडो की सराहना और टीवी चैनल द्वारा उसे अधिक बल एवं सपोर्ट दिए जाने के आंदोलन ने देश की जनता के बीच खाई को और अधिक बढ़ाने तथा मुल्क की छवि खराब करने का काम नहीं किया है? क्या देश में इस तरह का वातावरण नहीं बनाया गया कि करोना केवल मुसलमानों के कारण फैल रहा है? क्या राजनीतिक नेताओं और अन्य चैनल्स ने ऐसा वातावरण नहीं बनाया कि मुसलमानों का इस वायरस को फैलाने का कारण हिंदुओं को मारना है? सोशल मीडिया पर मुस्लिम विरोधी पोस्ट लगाकर उनके दिलों में मुसलमानों के खिलाफ जहर घोलने वाले क्या देश की छवि खराब करने के जिम्मेदार नहीं हैं? क्या कोरोना के बहाने मुसलमानों को जेलों और कुरनटाइन केंद्रों में स्थानांतरित नहीं किया जा रहा है? क्या पुलिस जबरदस्ती कोरोनावायरस का रोगी बनाकर जेलों में नहीं ले जा रही है, सूचना एवं प्रसारण संस्थाओं ने तबलीगी जमात व अन्य मुसलमानों पर कोरोना जेहाद का इल्जाम नहीं लगाया? क्या मीडिया और सोशल मीडिया पर नकारात्मक एजेंडे के ध्वज धारकों ने नहीं कहा था कि नई दिल्ली में निजामुद्दीन के इलाके में स्थित तबलिगही जमात के मरकज में मुसलमान देश में करोना फैलाने की साजिश के अन्तर्गत इकट्ठा हुए थे, क्या यह किसी से छुपा है कि लाकडाउन की अवहेलना करने का जिम्मेदार तबलीगी जमात को ठहराया जा रहा है? और यह कौन नहीं जानता कि स्वयं सरकार, राजनीतिक दलों एवं अन्य धार्मिक संगठनों की ओर से लाकडाउन और कोरोना वायरस से संबंधित कानूनों का उल्लंघन किया गया है? क्या कुछ स्थानों पर दिहाड़ी मजदूरों में खाने-पीने की वस्तुएं वितरण करने वाले मुसलमानों पर हमले नहीं किए गए? कोरोना जैसी महामारी के दौरान भी शांतिपूर्ण CAA/NRC के धरनो के अंतर अंतर्गत विगत चंद दिनों में दिल्ली में सैकड़ों नौजवानों विधार्थी नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी ओं को क्या दुनिया ने नहीं देखा।

उपर्युक्त घटनाओं लोगों और नेताओं की कथन को चिन्हित किए जाने के बाद यह बात स्पष्ट रूप से सामने आती है कि विश्व में भारत की छवि खराब करने और उसकी साख को गिराने का जिम्मेदार कौन है, अतः सरकार को चाहिए कि ऐसे लोगों और नेताओं के नफरत फैलाने पर केवल ट्वीट का लाली पाप न देकर उनके विरुद्ध कडी एवं त्वरित कार्रवाई की जाए, ताकि देश में अमन व शांति का वातावरण स्थापित हो सके,  एवं समस्त भारतीय नागरिक शांति से जी सकें, और हमारे प्रधानमंत्री वास्तव में एक विश्व नेता बनकर सामने आए, तथा सचमुच हिंदुस्तान विश्व गुरु बन सके। 
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