Tuesday, May 12, 2020

टुकड़े टुकड़े जोड़ने वालौं के टुकड़े हो गए ...........

लेख : ज़ैनुल आबिदीन नदवी
अनुवादक : मो साबिर हुसैन नदवी पूर्णिया बिहार
औरंगाबाद से भुसावल तक पैदल यात्रा करने वाले वह मज़दूर यह आस लगाए चले थे कि वहाँ से एक ट्रेन मध्य प्रदेश जाएगी, जो उन्हें अपनी मातृभूमि ले जाएगी और वे सभी अपनी मातृभूमि की खुशबू को सूँघ सकेंगे। उम्मीदौं से भरा यह क़ाफिला चल पड़ा जिसे न शोहरत की तलाश थी न वह ओहदा वह मनस़ब के ख़ाहिश मन्द थे, उनहैं तो  पेट के भूख की  आग ने घर से बाहर निकलने पर वि्वश कर दिया था, लेकिन शायद उन्हें इसका एहसास भी नहीं था कि भारत सरकार,का  कुप्रबंधन उन्हें मौत का कड़वा घूंट  पीने पर मजबूर करदेगा। फिर यह हुआ कि यह थका हारा काफ़िला  रात को कमर सीधी करने के लिए रेल की पटरियों पर ही सो गया, कियौं कि वह जान रहे थे कि ट्रेनें बंद हैं ,लेकिन अचानक मालगाड़ी के हाई-स्पीड कोच कारवां को रौंदते हुए गुज़र गए ,और 17 लोगों के कारवां ने उसी समय अपने जीवन की आख़री सांस ली और इस नश्वरता से विदा हो गए, यह वह कारवां था जो अपनी मेहनत से देश को कहीं न कहीं कुछ हद तक मजबूत कर रहा था, जिनके अपने सिर का साया आकाश की छाया के अलावा कुछ नहीं था, लेकिन उन्होंने बहुतों को छाया प्रदान किया था , इस दुर्घटना ने मेरे दिल को दहला कर रख दिया ,और हर विवेक व्यक्ति का दिल कांप उठा,
इन श्रमिकों की मृत्यु के लिए कौन जिम्मेदार है?  उनके साथ यह दुर्घटना क्यों हुई?  कारण और कारक क्या हैं?  अगर इन बातों को थोड़ी गंभीरता से लिया जाए और समझने की कोशिश की जाए, तो जिम्मेदारी किसी और की नहीं, बल्कि भारत सरकार की है, जिसे देश वासियों से सहानुभूति नाम की कोई चीज नहीं है,,भुखमरी से मरने वालों, दुर्घटनाओं में मरने वालों ,आत्महत्याओं की संख्या क्यों नहीं गिनी जाती?  जबकि इसके विपरीत, सभी प्रकार के रोगों से पीड़ित व्यक्ति को यह दावा करते हुए कि वह कोरोना से प्रभावित है, देश में तांडव मचा रखा है आख़िर यह करोना भी किया तमाशा है ,जिस से मरने वालों का तो कुछ पता नहीं जबकि इनडायरेक्ट इस से मरने वालों की संख्या इस से कई गुना ज्यादा हो चुकी है,
 हैरानी की बात है कि इस विषय पर जिस से भी बात की जाती है वह  हैरानी व्यक्त करता है, लेकिन कोई भी इस तमाशा के खिलाफ बोलने के लिए आगे क्यों नहीं आता है?  इन घटनाओं को गंभीरता से लेने और सरकार को विवेकता पुरवक सोचने के लिए मजबूर करने की आवश्यकता है, अन्यथा इसका नुकसान असहनीय होगा, जितनी अधिक देरी होगी, कठिनाइयां उतनी ही अधिक होंगी,
 बद नस़ीबी किया किया सब ख़्वाब धुंधले हो गए
टुकड़े टुकड़े जोड़ने वालौं के टुकड़े हो गए......
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