Monday, April 27, 2020

By: Mohammed Nadeemuddin Qasmi
Madrasas are the strong protection, publication and Preachers of islam and it's soldiers and selfless servants are being prepared by them.In which,the teachings of Allah and His Messenger are taught at all the times and ulamas are prepared who protect the iman and beliefs of the people and history also testifies that whenever a storm broke out against Islam, it was the graduates of the madrassas and religious universities who resisted this poisonous wind and led the Muhammadan Ummah to the path of reality of Islam. The big poet allama IQBAL (RH) said:If there were no madrasas in India, the situation of Indian Muslims would be similar to that of Andalusia That there is no sign of Islamic civilization except buildings,Similarly, in India except the Red Fort and the Taj Mahal there will be no sign of Islam.That is why we need to help Madarsa with our lives and property.But unfortunately ,some people criticize it and call them centres of charity and the Centers of depriving the poor,Due to which a wrong impression is being created on the people,And day by day, madrassas are facing financial difficulties,So now it is our responsibility to support them in any way we can,Especially in this difficult time when everyone is upset by this virus, So we should think and imagine! How the madrasas authorities and directors will manage the accommodation and food for thousands of students.Do they have Qaron's treasure or property?No way!These madrassas are supported every year only by our Zakat and donations.But now there is question "how to cooperate them and donate in lockdown"?
There are some solutions 
1..It is obligatory on wealthy people that they save their zatat and donate after lockdown, or transfer to the bank accounts of madrasas .
2..It is the responsibility of madrasas' officials and workers to contact and encourage their donors on their donations. 
3..It is the responsibility of the middle class to donate as much as they can.
4.. It is responsibility of madaras's directors and workers to turn to Allah and make dua as much as they can.
Allah save our madrasas .... Aameen!

MADARIS ARE ISLAMIC CENTRES , THEIR PROTECTION IS OUR RESPONSIBILITY.

लेख:आसिम ताहिर आज़मी
अल्लाह ने अपनी शरीअत में रहस्य, आदेशों में हिकमतें और ख़िलक़त में कुछ न कुछ मक़ासिद छिपा रखे हैं, कुछ रहस्य व हिकमत और मक़ासिद तो ऐसे होते हैं, की इंसानी ज़ेहन और अक्ल उनको समझ लेते हैं और कुछ ऐसे होते हैं जहाँ इंसानी दिमाग़ आजिज़ व दर्मान्दाह हो जाते हैं । अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने रोज़ह की कुछ हिकमतें बयांन की हैं, इरशाद है :

  ’’یَا أَیُّہَا الَّذِیْنَ آمَنُوْا کُتِبَ عَلَیْکُمُ الصِّیَامُ کَمَا کُتِبَ عَلَی الَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِکُمْ لَعَلَّکُمْ تَتَّقُوْن‘‘۔    
(सूरे बक़रह : १८३ )

तर्जमा :ऐ   इमान वालो ! तुम पर रोज़ह फ़र्ज़ किया गया है , जिस तरह तुम से पहले लोगों पर फ़र्ज़ किया गया था , इस उम्मीद पर की तुम मुत्तक़ी बन जाओ।

मालूम हुआ की रोज़ह तक़वा का एक ज़रीया है , और रोज़ह दार अपने मालिक से बाहुत करीब होता है , रोज़ह दार का पेट चूँकि खली होता है, इस लिए उसका दिल पाकीज़ह हो जाता है। उसका जिगर चूँकि प्यासा होता है इस लिए उसकी आँख में आंसू होते हैं। सही हदीस में है।  इरशाद नबवी है:

तरजमा: ए नौजवानों की जमात ! तुम में से जो शख्स निकाह की ताक़त रखे वह निकाह कर ले क्यूंकि निकाह निगाह को नीचे करती है। शर्म गाह की हिफाज़त करती है। और जो शख्स निकाह की ताक़त न रखे उसको रोज़ा रखना चाहिए। क्यूंकि रोज़ा शहवत को ख़त्म करता है.

रोज़ा,खाने और खून की जगहों में तंग कर देता है।  चूँकि उन जगहों में शैतान रहता है।  चुनांचह रोज़ह की वजह से बुरी सोच में कमी आ जाती है ।



रोज़ा- शहवत और बुराई के अंदेशों पर रोक लाग कर रूह को मुनव्वर और रोशन करता है।

रोज़ह एक रोज़ह दार को भूके , मुहताज और गरीब रोज़ह दरों की याद दिलाता  है। इसलिए वह उन पर रहम व करम करता है और उनके साथ मदद का हाथ बढ़ाता  है।  शायर कहता है :

 तर्जमा : ऐ रोज़ह दार , तूने सिर्फ अल्लाह के खौफ में खाना छोड़कर भूक और प्यास की दोस्ती अपनाई क़यामत के दिन तेरे लिए रहमत की खुशखबरी है।  तु नेकियों और नेमतों में खड़ा होगा।



रोज़ह नफ़्स की तरबियत, दिल की सफाई , निगाहों और  आज़ा ( हाथ, पैर , मुंह , नाक , कांन , आँख वगैरह ) की
हिफाज़त के लिए एक बेहतरीन मदरसा के जैसा है।

रोज़ह बन्दे और ईश्वर के बीच एक राज़ है। इसलिए हदीस क़ुदसी है : अल्लाह अज़ व जल (सर्वशक्तिमान ईश्वर) का फरमान है : इंसान का हर अमल उसके लिए है , रोज़ह के इलावा, क्यूंकि रोज़ह मेरे लिए है और मैं ही उसका इनाम दूंगा।

और ऐसा इसलिए की रोज़ह एक ऐसा अमल है जिस को सिर्फ अल्लाह ही  जानते हैं, जबकी नमाज़ , ज़कात और हज का मामला ऐसा नहीं है।

सल्फ़े सलिहीन( पूर्वजों ) , रोज़ह को अल्लाह से करीब करने, हर खैर की तरफ आगे बढ़ने का मैदान और तमाम भलाइयों का मौसम समझते थे। यही वजह है की रोज़े के इस्तेकबाल में खुशी की वजह से और रोज़े की जुदाई में रो पड़ते थे।


सल्फ़े सालिहीन (पूर्व धार्मिक गुरु) को रोज़े से हद दर्जा लगाओ था , इसी लिए वह रमज़ान में खूब मुजाहदह (संघर्ष ) अपने पूरे जी जान से उस में लग जाते। पूरी पूरी रात सजदह व रोने और खुशु खुज़ु में गुज़ार देते और दिन के ओकात में ज़िक्रो तिलावत , तालीम व दावत और नसीहत में मशगूल रहते।



सल्फ़े सालिहीन (पूर्व धार्मिक गुरु) रोज़े को आँखों की ठंडक दिल का सुकून और फितरी इत्मीनान का ज़रिया समझते। इस लिए वह रोज़े के मक़ासिद को सामने रख कर अपनी रूहों की तरबियत करते।  उसकी तालीमात की रोश्नी में अपने दिलों को साफ करते और उसकी हिकमतों को सामने  रखते हुए अपने नफ़्‍स को सवारने का फ़रीज़ा अंजाम देते।



सल्फ़े सालिहीन (पूर्व धार्मिक गुरु) के सही हालात में लिखा है की वह मस्जिदों में अपने अपने क़ुरानी नुस्खे ले कर बैठ जाते तिलावत करते जाते और रोते रहते,इस तरह उनकी ज़बानें और निगाहें हराम से महफूज़ भी हो जातीं।

तमाम रोज़े दार , मुसलमानो के लिए इत्तेहाद का मज़हर होते हैं। एक ही ज़माने में रोज़ह रखते हैं , एक ही वक़्त में इफ्तार करते हैं। एक ही साथ भूके होते है और एक ही साथ खाते  भी हैं। यह सब उल्फत व मोहब्बत , भाई चारगी और वफादारी ही तो है। रोज़ह गलतियों को मिटाने वाला और बुराइयों को ख़तम करने वाला है, हदीस शरीफ में है। इरशादे नबवी है :

तर्जमा : एक जुमा दूसरे जुमा तक।  एक उमरह दुसरे उमरह तक और एक रमज़ान दुसरे रमज़ान तक के तमाम गुनाहों को मिटा देता है , इस शर्त के साथ की कोई कबीरह गुनाह न किया जाए।



रोज़ह जिस्म को सेहत बख्शता है , गन्दगी को निकाल देता है , पेट को सुकून पहुँचाता है। खून को साफ़ करता है। दिल की हरकत मोतदिल (बराबर) करता है।  रूह को इत्मीनान देता है।  दिल को साफ़ सुथरा बनाता है। और अख़लाक़ को संवारता भी है।


रोज़ह दार जब रोज़े से होता  है तो उसकी आत्मा में भक्ति उत्पन्न  होती है।  आत्मा  में तवाज़ू आता है। इच्छाएं कम हो जाती हैं। इस वजह से उसकी प्रार्थना स्वीकार  होती है।  क्यूंकि रोज़ह दार को अल्लाह का  क़ुरब नसीब हो जाता है। रोज़े की एक बहुत बड़ी हिकमत है। और वह अल्लाह की प्रार्थना का  है। उसके आदेशों का पालन करना , और उसकी शरीयत के सामने सरे तस्लीम ख़म करना है। और सिर्फ रब की रज़ा  हासिल करने के लिए खाने पीने की लज़्ज़त को छोड़ देना है।



रोज़े के ज़रिये एक मुसलमान अपनी इच्छााओं को पराजित करता है और खुद अपनी आत्मा पर काबू  पता है , गोया रोज़ह आधे सब्र का नाम है। और अगर कोई शख्स बिला उज़्र शरई रोज़ह रखने से माज़ूर है तो वह कभी भी अपने आत्मा  और ईच्छाओं पर काबू नहीं पा सकता है। रोज़े के ज़रिये नफ़्स एक ज़बरदस्त तजरुबा से गुज़रता है ,इस लिए जिहाद ,क़ुरबानी और अज़ीम कामों को अंजाम देने और  हर आने वाली परेशानियों और मुशक़्क़तों को बर्दाश्त करने के लिए पूरे तौर पर तैयार हो जाता है ,यही वजह है की जब तालूत ने अपने दुश्मनों से जंग करना चाहा तो अल्लाह ने तालूत की क़ौम को नहर के ज़रिये आज़माया और तालूत ने उनसे कह दिया जैसा की क़ुरान कहता है :

’’فَمَنْ شَرِبَ مِنْہُ فَلَیْسَ مِنِّي وَمَنْ لَمْ یَطْعَمْہُ فَإِنَّہُ مِنِّی إِلاَّ مَنِ اغْتَرَفَ غُرْفَۃً بِیَدِہ‘‘۔

(सूरह बक़रह : २४९ )

तर्जमा : जो शख्स उस से पानी पीवे गा वह मेरे साथियों में से नहीं। और जो उसको ज़बान पर भी न रखे वह मेरे साथियों में से है;लेकिन जो शख्स अपने हाथ से एक चुल्लू भर ले।

(बयानुल क़ुरान : जिल्द १ पेज १६९ )


बस क्या था ! सब्र करने वाले और अपनी ख्वाहिशात पर ग़ालिब आने वाले कामियाब हो गए और अपनी फ़ितरतो और तबीयतों के ज़ोर के नीचे दब जाने वाले , ख्वाहिशात की गुलामी करने वाले जिहाद से पीछे हट गए।

रोज़े के फर्ज़ होने की हिकमतें बतौर खुलासा नीचे पेश की जाती हैं। ↴



रोज़े से अल्लाह का तक़वा नसीब होता है।
ख्वाहिशात पर ग़लबा नसीब होता है और नफ़्स काबू में आ जाता है।
एक मुसलमान ,मुसलमान होने की वजह से क़ुरबानी देने के वक़्त पर तैयार रहता है।
बॉडी पार्ट सब कण्ट्रोल में  आ जाते हैं।
ख्वाहिशात पर सख्त ज़र्ब लगती है।
जिस्म को सेहत नसीब होती है।
गुनाह ख़तम होते हैं।
उल्फत , मोहबबत ,भाई चारगी, भूकों की भूक और ज़रुरत मंदों की जरूरत का एहसास होता है।
अल्लाह बेहतर जनता है :
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अरबी किताब : रोज़े दारों के ३० सबक
लेखक : शेख आईज़ अल-क़रनी
उर्दू अनुवाद : वसीउल्लाह सिद्धार्थ नगरी
हिंदी: हामिद अख्तर

रोजा और पवित्र पैगंबर का मामूल

Tuesday, April 21, 2020

BY :MOHAMMED NADEEMUDDIN QASMI
8497945720.
Ramadan is going to start after a few days,
What is Ramazan?
it is a ninth month of Islamic calender ,it is month of barakah ,it is a tome of joyous growth, it is time for worship and soul purification, it is time to come closer to Allah,The prophet Mohammed (peace and blessings be upon him)says :
"اذا جاءرمضان فتحت ابواب الجنۃ وغلقت ابواب النار وصفدت الشیاطین "
Translation:where there comes the month of Ramazan, The doors of mercy (jannah)open , and hellfire is closed, the devils are chained up in it(Muslim)
There is first ten days for rahmah,the second ten days for maghfirat ,and the last ten days are to free from hellfire, in it ,the reward of nafils equal to farz,and farz is equal to 70faraiz in reward.Hazrat Aysha(RZ) Says
"کان النبی ﷺاذا داخل العشر شد مئزرہ واحیا لیلہ وایقظ اھلہ "
Translation:when the Ramazan entered The prophet Mohammed (peace and blessings be upon him)used to tight his pant, lived his night and awake his family.
Now ,Ramazan is upon us once again, But our mosques have been closed because of the virus,But the door of God is open so there is no need to be disappointed, there is question "HOW WE SPEND THIS RAMAZAN "There are some tips to do in it.
1.FASTING
It is the fifth pillar of islam ,and it is obligatory on who is an adult. In hadith ,The prophet Mohammed (peace and blessings be upon him)said:fasting will say in the day of judgment, O,Allah i prevented him form food and desires during the day, so accept my intercession for him,and the Qur'an will say O,my lord,I prevented him from sleeping by night ,so accept my intercession for him, the intercessions of both will be accepted (AHMAD)
ALLAH almighty says ,"The sawm (roza)is for me ,i shall reward it as i like.
In essence, there are many prophet 's sayings about it.
Inspite of that ,some people don't fast and say "we can't fast because of the summer and heat while they may sit inside air conditioned office and homes, and still complain.They should imagine the prophet and his companions, how they fasted? In additional ,he used to meet people and counselled them "How they spend Ramazan?, not only that,but he also participated jihad while fasting ,the battle of BADR and TABOK were fought during this blessed month of Ramazan in the scorching heat of Arab.
2.. RELATION AN RECITATION OF QURAN
The companions of our prophet Mohammed (may Allah peace and blessings be upon him) used to give special preference to the Quran during the holy month of ramazan, their recitation was not only reading verses but contemplating in its meanings.
Therefore, sufyan saury used to leave all acts of worship and turn to Quran,
Said ibn jubair used to finish the whole recitation of Quran in two nights,
Abo hanifa used to complete the holy Quran 61 times in a month.(Almustatraf)
Imam e shafai used to complete th Quran 60 times. (Alfatawa alhadisiya)
Shaik ul hadith hazrat zakariya used to recite the 30 verses in every day.(aap beti)
There ara many examples of our elders How was their Ramazan?and how was our Ramazan?imagine!
3.offer taraweeh .it is sunnah and pray extra salah.
4.Give zakat,and increase your charity as well as, the prophet was the most generous of all people and he used to become most generous in Ramazan,
Zuhri said, it is time of feeding poor,
Ibne omer used to break his fast with poor and if a poor person came to him asking food while he was eating, he used to give him his portion.
Therefore, we should improve our charity and feed the poors,not waste our money for parties Especially at this time۔
5..Try to perform Tahajjud and ishraq and chasht.
6.Don't waste time
It is precious and blessed time ,we should give attention to worship. Some ladies spend their time to make different kinds of meals at the time of iftar,and some males take a part of it ,it is a time of dua, plz take care of this time.
7..Repent and ask Allah for forgiveness

8.in the last ten days ,perform itekaf,it is sunnah.
9.Don't use smart phones in ever time to pass time,it is also big devil,it terns attention from worship to bad habits.
10...Avoid from sins and immoral things.
JAbir bin Abdullah said"when you fast then let your eyes, ears and tongue fast from false statements and bad deeds, and be calm and don't let the day of your fasting and the day of your not fasting be the same.
Abu Huraira related that prophet Mohammed, said,many people who fast get nothing from their fast except hunger and thirsty, many people who pray at the night ,get nothing from it except wakefulness BECAUSE of their immoral act(Darami)
May Allah give us taofiq to do these things.
Aameen!

The month of Ramadan and what to do?

Written by: Mohammad Mahboob Alimi
Amardobha dist sant Kabir Nagar.

             The opponents of Islam are accussing Islam from terrorist and terrorism and with lapts bad matters relating with Islam. While it's so obvious that Islam is the best, perfect, completed, unique religion.according to it's qualities and skills know by about Islam. they play the emotions of Muslims test  there patiences and different tactics are being used of Islam and prophet Hazrat محمد صلی اللہ تعالٰی علیہ وسلم.
 Jew and Christians pay there nefarious roles in all period.
Opponents throughly know this fact that Islam is the most important source of humen being....but his believers are able to take benefits from Islam.

          Even a common Muslim bless understands to sacrifice his soul for the sake of protectiont the Holly Quran and Islam.that's reason whenever a plan was made against Islam . Muslims have shown there Passions, loves and Faith .this is strange situation Europe, America  and other countries are propagating against Islam.
It's not a new matter to humiliated Islam and it's believers by yahood ,nasara and other religions.
Even today opponents of Islam are trying to stop the prophet's Islam and Quran growing popularly of Islam.

While the support of Allah  is with all believers and all person, when has made conspiracy against of Islam.
           The religion Islam mostly is being accepted in Europe America and other countries in comparison of other religions.the Holly Quran mostly is being read over all world and it's much readable book in world.
poisons against of Islam are being shared in Europe and America .even is scetched dirty schedule, even is attacked  from all sides of islam and Muslims.

         As being wronged on the siriya, Burma,filistin and other countries .and now this happening in India. How are being persecuted Muslims in India not hidden to any one ..
We should do good, avoid bads , help workers,change our characters , according to reads of Islam and be completed Muslim.

Islam and Terrorism

लेख: आसिम ताहिर आज़मी
+ 91 7860601011
 रमजान अल्लाह की तरफ से दी गई नेमातौं में से एक है, यह संभव है कि अल्लाह हमें इस रमजान के बाद कई और रमजान दे और यह भी संभव है कि यह रमजान हमारे जीवन का अंतिम रमजान होगा,
 यह रमज़ान पिछले कई रमज़ानों की तरह तो गुजर जाएगा लेकिन यह सोचने की बात है कि क्या हम ये  रमज़ान अल्लाह और उसके के रसूल की आज्ञाकारिता में खर्च करेंगे।? 

 इस पर विचार करना और समझना अधिक महत्वपूर्ण है कि यदि हम रमजान में अल्लाह और उसके रसूल की बातों का पालन करते हैं, तो क्या हम रमजान के बाद आज्ञाकारी बने रहने की प्रतिज्ञा करते हैं?

 यदि हाँ, तो यह बहुत संतुष्टिदायक बात है, और यदि नहीं, तो निश्चित रूप से ये बहुत नुकसान और सोचने वाली बात है,
  रमजान का आगमन ऐसे समय में हो रहा है जब न केवल हमारा देश बल्कि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस व्यापक रूप से फैला हुआ है हमारे देश के इलावा दुनिया के आधिक देशों में लाकडाउन लगा हुवा है। हमारे देश में भी, कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे के मद्देनजर लॉकडाउन का समय और बढ़ाया जासकता है ,  लेकिन ज्यादातर लोगों को इस बात का उल्लेख करते देखा गया है कि इस बार रमजान में क्या होगा।  कहां और कैसे तराविह की नमाज पढ़ेगे यह सब केवल कहने का विषय है: यह इस्लाम  धर्म की अच्छाई है कि समस्याओं को कठिन परिस्थितियों में  नरमी दी गई है। अपने अपने घरों में नमाज तराविह के साथ-साथ कुरान  की अधिक तिलावत करें सरकारी आदेश का पालन करें 
 लॉकडाउन में भी कई चीजें खुली हैं
 सोचने से तालाबंदी का ताला खुल सकता है।
 याद रखें अल्लाह जब एक दरवाजा बन्द करता है तो सौ दरवाजे खोल देता है। बेशक मुश्किल के बाद आसानी है, गम ना हो तो खुशी की कदर कौन करे, रात ना हो तो दिन का इन्तजार कौन करे, कैद और बन्दिश ना हो तो आजादी को कौन समझे, लाकडाउन जरूर है लेकिन जरा गौर से देखो हर चीज लाकडाउन नही है।
आकाश की तरफ देखो सुरज चांद सितारे लाकडाउन नही हैं 
 अपने अंदर मौजूद गुणों को देखें। कोई लॉकडाउन नहीं है
उन विज्ञानों को सीखने की कोशिश करें जिन्हें आप नहीं जानते हैं, कुछ नया सीखने के मार्ग पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
  अपना नाम लेकर अपनी हस्ती को आवाज दो तुम्हारी आवाज में कोई रुकावट नही है रु रु कर अपने गुनाहों की तोबा करें तोबा के रास्ते में कोई रुकावट नही है कोशिश करें लाकडाउन में ही नहीं बल्कि हमेशा इन बातों पर अमल करें।

 रमजान महिना अल्लाह का महीना है, जो दर्शाता है कि इस धन्य महीने का अल्लाह के साथ एक विशेष संबंध है, जो इसे एक विशिष्ट और प्रतिष्ठित महीना बनाता है।
 हदीस पाक मे है कि
 रमजान ऐसा महीना है जिसके पहले भाग में अल्लाह की रहमत बरसती है, मध्य भाग मगफरत, अंतिम भाग में नरक की आग से मुक्ति मिलती है।
रमजान महिना  रहमतौं बरकतौं और नेमातौं वाला महिना है बस चन्द दिनों ही में आने वाला है।

 रोजा रखने के बाद निहायत ही कमजोर ईमान वाले व्यक्ति का विश्वास  इतना मजबूत हो जाता है कि वह रोजा की हालत में  छिप कर खाना या दो तीन मिनट पहले रोजा खोलना गवारा नही कर सकता, तो आइये हम सब खुद से सवाल करें कि रोजा के इलावा दोसरे मामले में हम कियुं दिलेर होजाते हैं?। 
 "रोजे में हम अल्लाह के आदेश को स्वीकार करते हैं अल्लाह और उसके पैगंबर ने जो हुकम दिया है उसे तो हम वैसे ही मानते हैं ऐक मिनट की भी नाफरमानी नही करते हैं
जबकि रोजा के इलावा भी अल्लाह ने बहुत से अहकाम बतोर फर्ज आइद किये हैं
रोजा तो हम सब अहकामे इलाही मानते हैं लेकिन ___किया हाराम से बचना और हलाल कमाना अहकामे इलाही नही है? क्या हम तमाम पर नमाज बा जमात अहकामे इलाही नही है? क्या सही नेसाब के मुताबिक जकात अदा करना अहकामे इलाही नही है? क्या वालिदैन के साथ मुहब्बत व इहतिराम से पेश आना अहकामे इलाही नही है? क्या सिला रहमी अहकामे इलाही नही है?
इस के अलावा और बहुत से अहकामे इलाही हैं जिनको हमारे ऊपर फर्ज किया गया है लेकिन अफसोस की हम लोग उसे छोड़ देते हैं और इहसास तक नही होता।
आखिर में अल्लाह से प्राथना करता हूं कि इस मुबारक महिने के साथ साथ उन तमाम अहकामे इलाहिया पर जो हमारे ऊपर फर्ज हैं उन तमाम को पुरा करने वाला बनाऐ
आमीन

लॉकडाउन में रमजान का आगमन

Saturday, April 18, 2020

लेख: जैनुल आबेदीन नदवी
अनुवाद: मो साबिर हुसैन नदवी,पूर्णिया,बिहार

चारों ओर हर कोई ख़ुद  को ह़क़ पसंद और सच्चाई का झंडा उठाने वाला बताने में व्यस्त है और ताज्जुब है कि ख़ुद के तय किए हुए सिद्धान्तों पर अमल करने ही को ह़क़ समझने की भूल करते हुए इसी की दावत दे रहा है, जिस को क़बूल करने वाला उस की नज़र में अहले ह़क़ और रद्द करने वाला बातिल ‌समझा जाता है,शरीअत व त़रीक़त और दावाए ह़क़ की आड़ में मन चाही बातौं को मेअयारे ह़क़ बावर कराने का एक सिलसिला है,जिस से मुंह फेरना ,कुछ समझा दार समझे जाने वाले हज़रात की नज़रौं में गोया बहुत बड़ा गुनाह है, जबकि सच्चाई यह है कि दीन व शरीअत और नेज़ामे ह़क़ पर किसी ख़ास व्यक्ति की एजारा दारी नहीं कि वह जिसे चाहे अहले ह़क़ बताए,और जिसे चाहे उस से बाहर कर दे, बल्कि इस का एक मेयार है जिस का नाम तक़वा(अल्लाह का डर) है,इस मेअयार पर पूरा उतरने वाला ह़क़ पसंद और शरीअत की पैरवी करने वाला समझा जाएगा, चाहे वह एक चरवाहा ही कियौं न हो, और जिस की जिंदगी ज़ुहदो तक़वा से ख़ाली हों उसे अहले ह़क़ शुमार करना ह़क़ का ख़ून करने के बराबर होगा, चाहे वह साह़ेबे जुब्बा व दस्तार और एमामा व पायजामा ही कियौं न हो, और तक़वा का तराज़ू लेबास और ह़ुलया नहीं बल्कि ऐसा दिल है जो अहकामाते किताब और इत्तेबाए सुन्नत से मोज़य्यन हो,
लेकिन अफ़सोस है कि यह मेअयार लोगों की नज़रों में (नऊज़ो बिल्लाह)फ़रसूदा/पुराना हो चुका है और लोग ज़ाहरी शकलो सूरत को ही तक़वा का पैकर समझने के आदी हो चुके हैं, यही कारण है कि ह़क़ बयानी की सलाहियत ख़त्म होती जा रही है, और मिल्लत का बेड़ा डूबने के बिल्कुल क़रीब पहूंच चुका है मुसलमान अंध भक्त नहीं होता और जो अंध भक्त हो वह मुसलमान नहीं हो सकता, और अंधी अक़ीदत ने ही हमें यह दिन देखने पर मजबुर किया है,इस लिए इस मरज़/बीमारी से ख़ुद को निकालने और सह़ीह़ माना) अर्थ में इसलाम को अपनाने की कोशिश किजये.

मेअयारे ह़क़

लेख: ज़फर अहमद खान

रमजान एक पवित्र, महान, धन्य, प्रशिक्षणिक और अल्लाह की रहमतो के अवतरण का महीना है। इस का हर हर क्षण शुभम, सुखद एवं प्रकाशमय है। भाग्यशाली है वह व्यक्ति जिसे यह पवित्र महीना प्राप्त हो। इस महीने से पूरी तरह से लाभ उठाने के लिए, अग्रिम रूप से तैयारी करना महत्वपूर्ण है, आइए हम सभी एक साथ सोचें और विचार करें कि रमजान की तैयारी कैसे करें।

(१) सच्चे दिल और दृढ़ता से प्रयास करें कि रमजान में हम जो भी कार्य करेंगे,  जो भी इबादत करेंगे उसका उद्देश्य अपने भीतर पवित्रता स्थापित करना होगा इन्शा अल्लाह । और यही रोजे का वास्तविक उद्देश्य है और हम पवित्र महीने के बाद भी इस पर बने रहेंगे।

(२) एक हदीस है कि एक जो व्यक्ति केवल तआला के लिए  चालीस दिनों तक तक्बीर तहरीमा के साथ बा जमाअत नमाज अदा की उस के लिए दो बातें लिख दी जाती हैं। नर्क और पाखंड(निफाक) से मुक्ति। इस सम्मान को पाने के लिए बीसवीं शाबान से ही बा त का संकल्प लें कि अन्तिम रमज़ान तक सभी नमाज़े जमाअत और तक्बीर ए ऊला के साथ अदा करना है इन्शा अल्लाह।

(३) अल्लाह से खूब विनम्रता के साथ प्रार्थना करें। अल्लाह हमें रमजान जैसा पवित्र महीना नसीब फरमा ,ताकि हम अपने पापों को माफ करवा सकें और स्वर्ग के योग्य बन सकें। अल्लाह, हम कमजोर हैं, फिर हमारे माथे को पकड़ कर तेरे सामने झुकादे।

(४) उपवास के अभ्यास के लिए, शाबान के पंद्रहवें दिन से पहले कुछ उपवास करें, लेकिन आधे शाबान के बाद उपवास न करें, ताकि उपवास में कोई कमजोरी न हो। हां, यदि पिछले रमजान के कुछ उपवास रह गए हैं, तो उन्हें पूरा किया जाना चाहिए।

(५) कुरान के पाठ को शाबान के महीने से नियमित करें, साथ ही तहज्जुद और रात को जागने की आदत डालें, दुआएं अधिक से अधिक करें, नमाज़ को अक्सर व्यवस्थित करें ताकि पवित्र माह में इन कामों का करना आसान हो जाए।

(६) रमजान के अमूल्य समय को  व्यर्थ व्यतीत होने से रोकने के लिए, पूरे महीने की समय सारिणी बनाएं जो आपके काम, व्यापार और व्यवसाय के समय को अधिकतम आज्ञाकारिता और इबादात के लिए निर्धारित करता है और इन शेड्यूल का पालन करें जब तक कि कोई आपात स्थिति न हो।

(७) रमजान में, घरेलू उपयोग की महत्वपूर्ण और आवश्यक वस्तुओं को पवित्र महीने से पहले अच्छी तरह से खरीदा लिया जाना चाहिए ताकि खरीदारी के नाम पर पवित्र माह का मूल्यवान समय बर्बाद न हो। यदि आप रमजान से पहले भी ईद की भी खरीदारी

कर सकते हैं तो कर लें, ताकि आप अन्तिम दस रातों के दौरान अच्छी शबे कदर को पाने का प्रयास कर सकें ।

(८) महीने के मूल्यवान समय को बर्बाद करने से रोकने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करना बंद करें और यदि संभव न हो तो इसे कम करें, साथ ही टीवी आदि देखने से परहेज करें। यहां तक कि समाचार और धार्मिक कार्यक्रमों से भी इसे यथासंभव दूर करें। ध्यान रखें कि टीवी देखने से संगीत और नामहरम महिलाओं को देखने से बचना असंभव है,

(९) प्रामाणिक पुस्तकों की सहायता से अपनी व्यक्तिगत डायरी में सुधारात्मक और प्रशिक्षण के मुद्दों को नोट करें , जो अवसर के अनुसार इलाके में मस्जिद या अन्य मस्जिदों में लोगों को बताया जा सकता है। इस महीने जनता पवित्रता आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित होती है और आध्यात्मिक की तलाश करती है।

(१०) यदि अल्लाह ने आपको धन दौलत दिया है, तो रमज़ान के दौरान उमराह अदा करने की कोशिश करें। इस महीने में उमरह का इनाम हज के बराबर है, और आपके लिए यह भी संभव है कि अपने पड़ोसी को भी इस के लिए प्रोत्साहित कर सकें। अगर कोई तैयार होता है और अल्लाह की तौफीक से उमरह करता है, तो आपको बहुत (इनाम) पुण्य मिलेगा। इंशाअल्लाह। (११) दूर-दराज के शहरों, कस्बों, गांवों, मस्जिदों, कार्यालयों, सार्वजनिक स्थानों के साथ-साथ दूर की बस्तियों में सेहरी और इफ्तार समय सारणी वितरण की व्यवस्था करें। कभी-कभी, कई संगठनों और व्यक्तिगत सज्जनों द्वारा सेहरी इफ्तार समय सारणी प्रकाशित किया जाता है, यदि आपको नहीं मिल रहा है, तो आप इसे स्वयं मुद्रित करने की व्यवस्था कर सकते हैं।

(१२) पड़ोसियों, रिश्तेदारों, दोस्तों और प्रियजनों के साथ पवित्र महीने में अचछे संबंध रखें; यदि उनमें से किसी एक से भी अच्छा रिश्ता नहीं है, तो फोन करें और माफी मांगें यदि किसी कारण से फोन पर बात संभव नहीं है तो मुलाकात करें। रिश्ते को बेहतर बनाने की कोशिश करें और यह भी प्रार्थना करें कि अल्लाह भविष्य में हमारी मदद करें।

(१३) रमजान की तैयारी के लिए अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों और प्रियजनों को आमंत्रित करें और उन्हें पवित्र महीने के तैयारी कार्यक्रम में शामिल करें और अपने रिश्तेदारों को आमंत्रित करें ताकि यह निमंत्रण पूरे शहर और आसपास की बस्तियों में आम हो। और एक आध्यात्मिक वातावरण बन जाए,

(१४) घर के अतिथि के अनुसार इसे लोगों को उपलब्ध कराए रखें, इससे ज्ञान प्रसारण का पुण्य होगा और इसके अलावा स्वयं भी इसका लाभ होगा।

(१५) रमज़ान के एक भी पल को बर्बाद करने से बचें, और हर एक पल को अच्छे कामों में व्यस्त रखें। जिक्र एवं दुआ करते रहें, क्योंकि यही वह महीना है, जिसमें इंसान अच्छे कामों की ओर आकर्षित होता है, एवं इन्सान यथासंभव अचछे काम करने तथा बुरे कामों से बचने का प्रयास करता है।

(१६) रमज़ान के पूरे महीने के शेड्यूल में आपको परिवार के व्यावहारिक, धाार्मि व सामाजिक प्रशिक्षण के लिए रोजाना कुछ समय अलग से निर्धारित करना चाहिए और इसे यथासंभव करने की कोशिश करनी चाहिए। इस से बच्चों को आपके प्रशिक्षण का एक बड़ा हिस्सा प्राप्त होगा, जो सभी के लिए एक इनाम होगा।

(१७) अगर गुंजाइश है, तो अकेले अन्यथा रिश्तेदारों और अपने प्रियजनों को साथ लेकर वंचित गरीबों और जरूरतमंदों के लिए इफ्तार की व्यवस्था करें , व्रत रखने वालों(रोजेदार) को इफ्तार कराने का बड़ा इनाम मिलता है। अपने अधीनस्थ कार्यकर्ताओं और यात्रियों का भी ध्यान रखें और कार्यक्रम में अपने पड़ोसियों का विशेष ध्यान रखें।

(१८) अंतिम दस दिनों में एतिकाफ का इरादा करें, उसके लिए मोहल्ले की मस्जिद सबसे उत्तम है, परंतु दूसरी मस्जिद में भी कर सकते हैं, इतिकाफ के इरादे के साथ यह भी सुनिश्चित कर लें कि घर से आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे होगी ताकि पूर्ण रूप से यह काम अंजाम दिया जा सके, साथ ही अलग से एतिकाफ के दिनों की समय सारणी भी तैयार कर लें

(१ ९) अपने द्वारा या किसी विद्वान के साथ, कुछ इस पवित्र महीने से संबंधित अहकाम एवं मसाइल तैयार करें ताकि स्वयं गलत न हों और दूसरों को भी त्रुटियों से बचाया जा सके। ये बातें अन्य इबादत करने वालों, आम जनता और छात्रों को भी बताएं।

(२०) कुरान के पठन-पाठन और उस के संदेश के अध्ययन हेतु अधिकतम समय देने के लिए एक कार्यक्रम बनाएं। एक दिन में कितने हिस्से पढ़ने हैं, यह समझने की कोशिश करें कि कितने भाग हैं और अधिकतम पाठ के साथ इसे कम से कम एक बार इस के अर्थ को समझने की कोशिश करें। प्रत्येक भाषा में इस की  सरल और संक्षिप्त व्याख्या उपलब्ध है।

(२१) शाबान के अंतिम पंद्रह दिनों में घर और परिवार को तैयार करने के लिए, एक गैप के साथ कुछ बैठकें आयोजित करें जिसमें रमज़ान के गुण और मसाइल को बयान करें, रमज़ान कैसे बिताना चाहिए। धार्मिक विद्वानों के उपदेशों को सुनायें, और महीने के महत्व को बयान किया जाए ताकि वे पूरी तैयारी के साथ रमजान बिता सकें।

(२२) कुछ पैसे निर्दिष्ट करें और इसे अलग करें ताकि यह रमजान के महीने में अच्छे कामों में खर्च कर सके। यह दान और जकात के अलावा है। अगर जकात वाजिब है तो उसे समय पर निकाल कर योग्य व्यक्ति को पहुंचाने का प्रयास करें, इस से उन्हें भी ईद मुबारक की खुशी नसीब होगी।

(२३) खूब प्रार्थना करें, कि या अल्लाह जब रमजान आये हमें पूर्ण स्वास्थ्य और कल्याण में रख, ताकि इबादत अच्छे विवेक के साथ पूरी हो सके। किताबों में हमारे पूर्वजों के बारे में उल्लेख किया गया है, जिस के अनुसार वे रमजान से पहले उसे पाने और रमजान के बाद उसकी स्वीकृति के लिए प्रार्थना करते थे ।

(२४) जब रमजान आए तो अल्लाह का शुक्र अदा करें, इसलिए कि अल्लाह ने हमें बहुत सारी नेमतों से नवाजा है और  और एक बड़ी नेमत रमजान उल मुबारक भी आता करके उसमें एक और बढ़ोतरी कर दिया, अब हमें लैलतुल कदर, कयामुल लैल, रहमत मगफिरत और जहन्नम से आजादी जैसी नेमतें इसी महीने में नसीब होंगी, इस पर जितना भी शुक्र अदा करें कम है और अल्लाह ने वादा किया है कि शुक्र अदा करने पर और मिलेगा और शुक्र ना अदा करने पर मेरा अजाब बड़ा सख्त है           

(२५) रमजान के रूप में अमूल्य वरदान  प्राप्त करने में खुशी महसूस करें। प्यारे पैगंबर अपने साथियों को रमजान के आने की खुशखबरी सुनाते थे; आशीर्वाद देते और आशीर्वाद के लिए रमजान से अच्छा महीना और क्या हो सकता है? इसलिए, विश्वासी को उसके आगमन पर आनन्दित होना चाहिए।

(२६) सभी प्रकार के पापों और अमरता को तुरंत त्यागने के इरादे से रमजान का स्वागत करें, और इस इरादे को और भी मजबूत करें, और भविष्य के सभी छोटे बड़े पापों से बचने का संकल्प लें। शक्ति के लिए अल्लाह से प्रार्थना करें।

(२७) नेकियों को व्यर्थ और बर्बाद करने वाले कामों से बचने का विशेष रूप से प्रयास करें, जैसे जुबान से गुनाह की और बेकार बातें बोलना, आंखों से नाजायज और हराम चीजें देखना, और रमजान में हर ऐसी चीज से बचना जो अल्लाह की नाराजगी का कारण हो, अल्लाह से गुनाहों से बचने का सवाल भी करते रहना चाहिए।

(२८) हज़रत सलमान फ़ारसी कहते हैं: “रमज़ान में चार काम अधिक से अधिक करो। इनमें दो चीजें एसी हैं जिन से आप आप अल्लाह को खुश कर पाएंगे, और दो चीजें हैं जिन से आप बेनियाज नहीं हो पाएंगे। पहली दो चीजें जिनसे आप अल्लाह को खुश कर सकते हैं: ला इलाह की गवाही देना और इस्तिग्फार करना, और दो चीजें जिन से आप बेनियाज नहीं हो पाएंगे, वह है अल्लाह तआला से जन्नत मांगना और नर्क से पनाह मागना, इसलिए इन चारों को अक्सर करने का प्रयास करें।

(२ ९) रमजान के बाद भी, अच्छे कामों की स्थापना के लिए प्रार्थना के साथ, अच्छे कामों के प्रतिरोध के लिए प्रार्थना करनी चाहिए, विशेष रूप से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हज़रत मुआवियह को यह दुआ हर फर्ज नमाज के बाद पढने का आदेश दिया था।

(३०) पिछले रमज़ान को याद करके उसमें होनेवाली कमियों से बचकर वर्तमान रमज़ान को  बेहतर और बेहतर बनाने की कोशिश करे।

      अल्लाह ताला इन तमाम चीजों के मुताबिक हमें रमजान उल मुबारक की तैयारी की तौफीक अता फरमाए, हमें रमजानी नहीं बल्कि रब्बानी बनाए, और केवल रमजान ही में नहीं बल्कि पूरी जिंदगी रमजान की तरह गुजारने की तौफीक अता फरमाए, हमेशा जिक्र फिक्र दुआ मुनाजात फराइज और वाजिबात के अलावा नमाज की पाबंदी की तौफीक अता फरमाए आमीन

रमज़ान का स्वागत कैसे करें

Friday, April 17, 2020

लेख: ज़ैनुलआबेदीन नदवी
अनुवाद: मो० साबिर हुसैन नदवी
लाक डॉउन का इकिसवां और आख़री दिन था, हिन्दुस्तान के अनेक एलाकौं में ख़ास तौर पर अरूसुल बिलाद कहे जाने वाले शहर मुंबई में घिरे हुए लोग अपने वतन वापस जाने के अरमान लिए हुए थे, मज़दूर पेशा, मजबूर तबक़ा जिस के पास न तो खाने को ग़िज़ा /अन्य है और न ही रहने को मकान, होटलों के सहारे जीने वाले, किराया की छत तले रहने वाले बेकस वह बेबस लोग यह समझ रहे थे कि १४ अपरील को वह‌अपने अपने घर रवाना होंगे और वादीए मौत से बच निकलेंगे जहां कोरोना से ज्यादा भुखमरी का क़हर आन पड़ा है,मगर देखते ही देखते तुग़लक़ी फ़रमान जारी होता है और लाक डॉउन की अवधि में और बढ़ोतरी कर दी जाती है,न तो ग़रीबों की ग़रीबी पर बात की जाती है और न ही उन की परेशानी का कोई हल बताते हुए उन की बे कसी व बे बसी का मदावा तलाश किया जाता है, जिस का लाज़मी नतीजा यह था कि लोग सड़कों पर आऐं और अपने जाएज़ मोतालबात की मांग करैं,ऐसा ही हुआ, बांद्रा, मुम्ब्रा और सूरत की अवाम सड़कों पर आ गई, और अपने वतन जाने की मांग करने लगी, जिस का जवाब ऐसी बरबरता और कुरूरता से दिया गया कि इतिहास कभी माफ़ नहीं करेगा,उन पर लाठी चार्ज की गई और इस समाजिक इन्सानी मामले को धार्मिक रंग देते हुए मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर घोलने की नापाक कोशिश की गई, हुकूमत और वर्दी के नशे में उन बेगुनाह इनसानौं के साथ जो ना मुनासिब सुलूक अपनाया गया उस की जितनी निन्दा की जाय कम है हमें ऐसी हुकूमत और हुकूमती स्टाफ़ के ख़िलाफ़ आवाज उठानी चाहिए,हम ख़ामोश कियौं हैं?यह दरिंदगी और जानवरपन कब तक बर्दाश्त किया जाय गा?उन पर लाठियां तो ऐसी बरसाईं जाती हैं जैसे वह कोई क़ातिल और मुजरिम हों, किया उन का जुर्म सिर्फ यही है कि वह अपने घरों से दूर हैं, मजबूर हैं, ग़रीब हैं और अपने घर जाना चाहते हैं
ह़क तो यह था कि उन की बात सुनी जाती और उनकी उम्मीदों पर पानी फेरने के बजाय उन को भेजने का कोई रास्ता निकाला जाता,उन के साथ प्यार वो मोहब्बत का मामला किया जाता, लेकिन नहीं साहब, हुकूमत ने यह ठान लिया है कि वह ग़रीबों के बदन में बाक़ी बचा हुआ ख़ुन भी चूस कर रहेगी,न तो उन के जाने का रास्ता निकाले गी और न ही उनके पेट का प्रबंध करेगी,अब उन मज़दूरों के पास सिवाय मौत के और कोई चारा नहीं,हां उन्हें एख़तेयार है चाहे भूख से मरैं या बिमारी से, लेकिन हर हाल में मरना ही है, मुम्बई के हालात मालूम करने पर पता चला कि मज़दूरी करने वाले ज्यादातर वह लोग हैं जो होटलों के सहारे जीते हैं और अब तमाम होटल बन्द हैं,खाने को कुछ मोयस्सर नहीं, कुछ लोग खाना बांटते हैं तो सिर्फ ‌हलदी पावडर पानी, और चावल के सिवा कुछ नहीं रहता जो ह़लक़ से उतारे नहीं उतरता,न जाने कितनी जानैं जा चुकी हैं और कितनौं ने ख़ुद कुशी कर ली है , सोशल मीडिया पर वायरस विडियोज़ देखे नहीं जाते, आख़िर उन मज़दूरों के साथ हमदर्दी का कोई रास्ता तो होना चाहिए या सिर्फ घरौं में ही बैठ कर जान देने की तरग़ीब दी जाए गी

मुंबई की मज़बूर अवाम

आज दुनिया का हर व्यक्ति चाहे कीसी भी धर्म का मानने वाला हो, इस प्रश्न का उत्तर अवश्य चाहता है कि, खुदा क्या है? क्या वह मौजूद है? खैर, ये सवाल बहुत स्पष्ट है, और इसका उत्तर भी स्पष्ट है परन्तु उसे मानने का नज़रिया अलग है।
पहला सवाल यह है कि खुदा क्या है?
खुदा वह है जिसकी न प्रारम्भ है और न ही अंत, खुदा वह है जिसका कोई पिता नहीं है, कोई पुत्र नहीं है, खुदा वह है जो वह देखता तो है, लेकिन उसके पास कोई आंख नहीं है, वह सुनता तो है लेकिन उसके कान नहीं, वह हर काम करता तो परन्तु उसका कोई शरीर नही। यहाँ तक कि मनुष्य का दीमाग उसके अस्तितव की कल्पना भी नही तक सकता।
रहा यह प्रश्न कि क्या खुदा मौजूद है?
सबसे पहले, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यदि कोई व्यक्ति खुदा के अस्तित्व से इनकार करता है, तो वह किसी भी तर्क को अस्वीकार कर सकता है, जैसे कि यदि कोई यह मानने से इनकार करता है कि लोग चंद्रमा पर जा चुके हैं, तो आपको उसे कितना ही तर्क देंगे वह अस्वीकार कर देगा।
खैर, यहां कुछ तर्क हैं ।
(1) ब्रह्मांड का अस्तित्व:- खुदा के मौजूद होने का सबसे बड़ा तर्क यह है कि ब्रह्मांड का अस्तित्व है क्योंकि हम सभी जानते हैं कि एक छोटी सी चीज अपने आप अस्तित्व में नहीं आ सकती। तो इतना बड़ा ब्रह्मांड अपने आप ही कैसे अस्तित्व मे आ सकता है? पत चला कि कोई तो है जिसने इस ब्रह्मांड की रचना की है, और रचना करने वाला ही खुदा है।
(2) खुदा के अस्तित्व के लिए दूसरा महत्वपूर्ण तर्क यह है कि यह संसार बहुत ही संगठित है और हमने हमेशा देखा है कि बड़ी से बड़ी मशीनें भी बिना दिशा-निर्देश दिए स्वचालित रूप से नहीं चल सकती हैं, यहाँ तक कि डॉ० जॉन वी इटन्साँफ और क्रॉफर्ड बैरी का बनाया हुआ कंप्युटर जिसे
वैज्ञानिक आसान बनाने के लिए वर्षो से काम कर रहे हैं, फिर भी कंप्यूटर हमारे मार्गदर्शन और आदेश के बिना कुछ नहीं करता है। तो यह संसार
बिना किसी आदेश के कैसे चल सकता है? और वह भी पुर्ण अनुशासन के साथ कि हर दिन एक ही दिशा में उगता सूरज, हमेशा चंद्रमा २४ घंटे में ही अपने चक्र को पूरा करते हैं । पता चला कि कोई तो है जो पूर्ण अनुशासन के साथ इस महान ब्रह्मांड को चला रहा है, और निश्चित रूप से वही खुदा है ।     खुदा के अस्तित्व पर कई अन्य तर्क,वितर्क दिए जा सकते हैं। परन्तु मानने वाले के लिए यही दो काफी हैं और ना मानने वाले के लिए हज़ारो नही लाखों भी कम हैं।

खुदा क्या है ?

Thursday, April 9, 2020

By:Zafar Ahmad Khan
At :Chhibra, P. O. Dharmsinghwa Bazar , District :Sant Kabir Nagar
         Dua is a form of worship, in fact our holy Prophet sallallahu alaihi wasallam regarded it as the best form of worship. The Prophet(pbuh) said, “Supplication is the essence of worship.” Then, the Prophet recited the verse, “Your Lord says: Call upon Me and I will respond to you. Verily, those who disdain My worship will enter Hell in humiliation.” (Almomin:60).  
          When we make dua in front of  Almighty Allah for our needs and wants our dua is being answered,  Allah Almighty says in the Holy Quran:“When my servants ask you concerning me, (tell them) I am indeed close (to them). I listen to the prayer of every suppliant when he calls on me.” (Albaqarah:186), and we will be rewarded for worshiping also. Through dua we accept the power and authority of Allah and our weakness in front of him.
          Dua is considered very power full in Islam, as it can change our fate and it can be the most powerful weapon for a Muslim at the time of grief and sorrows. Dua is not just asking about our needs from Allah, as it is the belief of all Muslims that Allah is the sole provider and creator of everything. So through dua we also thank Allah for whatever he has given to us, weather it is our heartbeat, our breath, our health or our wealth, all of these are provided us by Allah. We also ask guidance from Allah at the time of difficulty to show us the way to face this hurdle. Allah is listening to each and every dua made in front of him and answers all the duas .
Etiquettes of Dua:
1. Faithfulness to Allah. 
2. Avoiding from haraam food, clothing and earnings.
3. Making Dua with sincerity,(means  that nobody but Allah Ta’ala will fulfill his objectives).
4. Performing a good deed prior to making the Dua.  
5. Making Dua whilst one is pure & clean. 
6. Making wudhu before Dua. 
7. Facing the Qiblah direction. 
8. Praising Allah at the beginning as well as at the end of Dua.
9. Reciting Durood & salam upon Prophet(pboh)at the beginning and the end. 
10. Asking Allah by his name and Attributes. 
11. Trusting in Allah and having certainty  that it will be answered. 
12. Raising both the hands up to the shoulders.
13. Presencing of the heart in dua. 
14. Sitting with humility and respect. 
15. Avoiding from raising the eyes towards the sky whilst making Duaa.  
16. Crying with the fear of Allah while making Dua.
17. Avoiding from ceremonies rhyming of the Duaa phrases.
18. Avoiding from saying the Dua in a singing tone.  
19. Making dua in a moderately low voice. 
20. Making Dua in a soft voice.  
21. Uttering  Dua phrases transcribed from the Prophet (pbuh). 
22. Not making Dua against oneself, or his family, wealth and children. 
23. Making a Dua that encompasses most of the needs of Deen and the dunya.
24. Making dua for all matters. 
25. Making Dua in favour of oneself first, thereafter ones parents and to include the other Muslims in Dua as well.
26. Not making dua for forbidden, prohibited and impossible things. 
27. An Imam not make Dua for himself only but he should Include all the congregation in the Dua. 
28. Making Dua with enthusiasm & yearning. 
29. Making  Dua repeatedly, (repetition should be at least thrice). 
30. Avoiding from making Dua of severing family ties or other sins.
31. Avoid making Duas of pre-determined and fixed things. 
32. Not making a Dua in which the person ask Allah Ta’ala to confine His mercy to himself only.  
33. Asking only Allah Ta’ala alone for all needs. 
34.The person making  Dua and the person listening to it, both should say ‘Aameen’ at the end. 
35. Rubbing both hands over the face at the termination of Dua. 
36. Not being impatient over the acceptance of Duas. 
37. Beseeching, humility, hope and fear. 
38. Focusing with proper presence of mind.
39. Saying dua silently and not out loud. 
40. Asking Allah by mentioning past good deeds we performed sincerely for him.
               May  Allah enable to make dua at all times, not just during times of distress, and not only for ourselves but also for our parents, brothers, sisters, spouses, children, relatives and friends, specially muslims who are struggling everywhere, Aameen.

Importance of Dua and it's etiquettes

Tuesday, April 7, 2020

शब ए बरात एक ऐसी पाकीज़ा रात है जिस मे अल्लाह की इबादत करने वाले पर अल्लाह पाक की बेशुमार रहमतें नाजि़ल होती है। इस रात गुनाहों की बख्शिस होती है, जहन्नम से निज़ात (छुटकारा) मिलता है और इसी रात बन्दों (लोगों) की पुरे साल रोज़ी लिख दी जाती है।
शब ए बरात में हमें ज्यादा से ज्यादा इबादत करके अल्लाह से हमारे गुनाहो की मुआफी मांगनी चाहिए। और अल्लाह पाक से रो-रोकर दुआ मांगनी चाहिए ! बेशक वही है रिज़्क़ देने वाला ! जिंदगी और मौत देने वाला !  और सभी की सुनने वाला है। और इस महामारी मे से निज़ात देने वाला वही है।

इस रात की नफ्ल नमाज़े और तस्बीहात के पढ़ने का तरीका

۞मगरिब की नमाज़ से पहले पढ़ें:
मगरिब की नमाज़ से पहले 40 मर्तबा
لَاحَوْلَ وَلَا قُوَّۃَ اِلَّا بِااللّٰہِ الْعَلِیِّ الْعَظِیْمِ
और सो  मर्तबा दुरुद शरीफ पढ़ने की बरकत से  40 वर्ष के गुनाह माफ होते हैं  और जन्नत में खिदमत के लिए 40 हूर मामूर कर दी जाती हैं (मिफताहुल जिनान)
۞मगरिब के बाद 6 रक्आत मुहताजी, आफत, और बलियात से महफूज़ रहने के लिए पढ़े।
मगरिब की नमाज के बाद 6 रकात नवाफ़िल इस तरह पढ़ें कि 2 रकात नमाज नफ्ल बारा ए  दराज़ी ए उम्र बिलखैर पढ़ें फिर सुरे यासीन या सुरह अहद 21 बार पढ़ कर दुबारा दो रकात नफिल बारा ए तरक्क़ी व कुशादगी ए रिजक पढ़े फिर सुरे यासीन या सुरह अहद 21 बार पढ़ कर और 2 रकात नफिल जमीन व आसमान के मुसीबतों से महफूज़ रहने के लिए पढ़ें फिर सुरे यासीन या सुरह अहद 21 बार पढ़ कर दुआ ए शाबान पढ़ें  इंशाल्लाह 1 साल तक मुहताजी, आफत, और बलियात करीब नहीं आएंगी |

۞तमाम छोटे बड़े गुनाहों की माफी
 8 रकात नफिल दो-दो करके पढ़ें, हर रकात में सूरह फातिहा के बाद 25 मर्तबा सूरह इखलास पढ़ कर ख़ुलूस ए दिल से तौबा करें और इस दुआ को
اَللّٰہُمَّ اِنَّکَ عَفُوٌّ کَرِیْمٌ تُحِبُّ الْعَفْوَ فَاعْفُ عَنِّیْ یَا غَفُوْرُ یَا غَفُوْرُ یَا غَفُوْرُ یَا کَرِیْمُ
खड़े होकर, बैठ कर, और सजदे में 44 मर्तबा पढ़ें गुनाहों से ऐसे पाक हो जाएंगे जैसे कि आज ही पैदा हुए हों |

۞रिजक में बरकत और कारोबार की तरक्की के लिए:
 2 रकात नमाज हर रकात में सूरह फातिहा के बाद आयतुल कुर्सी एक मर्तबा सूरह इखलास 15 मर्तबा पढ़ें | सलाम के बाद 100 मर्तबा दुरुद शरीफ पढ़ें फिर 313 बार
 یَاوَھَّابُ یَا بَاسِطُ یَارَزَّاقُ یَا مَنَّانُ یَا لَطِیْفُ یَا غَنِیُّ یَا مُغْنِیُّ یَا عَزِیْزُ یَا قَادِرُ یَا مُقْتَدِرُ
पढ़ने से कारोबार में बरकत और रिजक में बढ़ोतरी हो जाती है |


۞मौत की सख्ती से आसानी और अजाबे कब्र से हिफाजत
 4 रकात पढ़ें हर रकात में सूरह फातिहा के बाद सूरह तकासुर एक मर्तबा और सूरह इखलास बार पढ़कर सलाम के बाद सूरह मुल्क 21 मर्तबा और सूरह तौबा की आखिरी दो आयत है 21 बार पढ़ने से इंशाल्लाह मौत की मौत की सख्तीयों और कब्र के आजाब से महफूज रहेंगेक |


۞2 रकात नफ्ल तहियातुल वजू पढ़ें
तरकीब: हर रकात में सूरह अलहम्द के बाद एक बार आयतल कुर्सी 3 बार सूरह इखलास पढ़ें | फजीलत: हर कतरा पानी के बदले 700 रकात नफिल का सवाब मिलेगा |
2 रकात नफ्ल
हर रकात में अल हम्द के बाद एक बार आयतल कुर्सी 15 बार कुल सूरह इखलास और सलाम के बाद एक सौ बार दुरूद शरीफ पढ़ें | फजीलत: रोजी में बरकत होगी रंज व गम से निजात, गुनाहों की बख्शीश व मगफिरत होगी |

۞8 रकात दो-दो करके
तरकीब: हर रकात में सूरह अलहमद के बाद 5 बार सूरह इखलास फजीलत:  गुनाहों से पाक साफ होगा दुआएं कुबूल होगी सवाब ए अज़ीम होगा

۞12 रकात दो दो करके
तरकीब:  हर रकात में सूरह फातिहा के बाद 10 बार सूरह इखलास  और 12 रकात पढ़ने के बाद 10 बार कलमा ए तौहीद 10 बार कलमा ए तमजीद 10 बार दुरुद शरीफ फ़ज़ीलत: तमाम नेक हाजतें पूरी होंगी

۞14 रकात दो-दो करके
 तरकीब हर रकात में सूरह फातिहा के बाद जो सूरह चाहे पढ़ें फजीलत: जो भी दुआ मांगे कुबूल होगी
۞4 दो-दो करके
तरकीब: हर रकात में सुरह फातिहा के बाद 50 बार सूरह इखलास शरीफ  फजीलत: गुनाहों से पाक हो जाएगा जैसे अभी मां के पेट से पैदा हुआ हो |

۞8 रकात दो दो करके
हर रकात में सूरह फातिहा के बाद 11 बार सूरह इखलास इसका सवाल खातून ए जन्नत बीबी फातिमा जहरा रजी अल्लाहा को नज्र करें  फ़ज़ीलत:  आप फ़रमाती हैं कि इस नमाज पढ़ने वाले की शफ़ाअत  किए बिना जन्नत में कदम ना रखूंगी|
सलातुत तस्‍बीह का आसान तरीका
तस्‍बीह “सुब्‍हानअल्‍ला हि वलहम्‍दु लिल्‍ला हि  वला इला ह इल्‍लल्‍ला हु  वल्‍लाहु  अकबर”
سُبْحَانَ اللّٰہِ، وَالْحَمْدُ لِلّٰہِ، وَلَا إِلٰہَ إِلاَّ اللّٰہُ، وَاللّٰہُ أَکْبَرُ
सबसे पहले सलातुत तस्‍बीह की नियत करें (चार रकअत एक सलाम से)
तर्जुमा: नीयत की मैंने 4 रकअत सलातुत तस्‍बीह, वास्‍ते अल्‍लाह तआला के, मुंह मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़। अल्लाहु अकबर।
फिर सना (सुब्‍हानाक अल्‍लाहुम्‍मा…) के बाद 15 मरतबा तस्‍बीह पढ़ें। फिर
आउजु बिल्‍ला हि  मि नश्‍शैता निर्र जीम बिस्मिल्‍लाहिर र्रहमानिर्र हीम
सुरह फ़ातिहा (अल्‍हम्‍दोलिल्‍ला हि रब्बिल आ लमीन….) सूरे मिलाइये (कुरआन की कम से कम तीन आयतें या जो चाहें) सूरे मिलाने के बाद 10 बार
سُبْحَانَ اللّٰہِ، وَالْحَمْدُ لِلّٰہِ، وَلَا إِلٰہَ إِلاَّ اللّٰہُ، وَاللّٰہُ أَکْبَرُ

फिर रुकूअ् में 10 मरतबा
سُبْحَانَ اللّٰہِ، وَالْحَمْدُ لِلّٰہِ، وَلَا إِلٰہَ إِلاَّ اللّٰہُ، وَاللّٰہُ أَکْبَرُ


 पढ़ें । फिर  (रुकूअ् से खड़े होकर)
क़याम (समिअल्‍ला हु लेमन ह मे दह  रब्‍बना लक लहम्‍द के बाद) में 10 मरतबा
سُبْحَانَ اللّٰہِ، وَالْحَمْدُ لِلّٰہِ، وَلَا إِلٰہَ إِلاَّ اللّٰہُ، وَاللّٰہُ أَکْبَرُ

पढ़ें। फिर सज्‍दे में 10 मरतबा (सुब्‍हान रब्बिल आला के बाद) पढ़ें।
سُبْحَانَ اللّٰہِ، وَالْحَمْدُ لِلّٰہِ، وَلَا إِلٰہَ إِلاَّ اللّٰہُ، وَاللّٰہُ أَکْبَرُ
फिर (सज्‍दे के दर‍मियान) जल्‍सा में 10 मरतबा
سُبْحَانَ اللّٰہِ، وَالْحَمْدُ لِلّٰہِ، وَلَا إِلٰہَ إِلاَّ اللّٰہُ، وَاللّٰہُ أَکْبَرُ
पढ़ें। फिर दूसरे सज्‍दे में 10 मरतबा (सुब्‍हान रब्बिल आला के बाद)
سُبْحَانَ اللّٰہِ، وَالْحَمْدُ لِلّٰہِ، وَلَا إِلٰہَ إِلاَّ اللّٰہُ، وَاللّٰہُ أَکْبَرُ
पढ़ें। फिर अगली रकअत के लिए खड़े हो जाएं। इस तरह पहली रकअत में 75 मरतबा पढ़ें, दूसरी रकअ्त में 75 मरतबा पढ़ें। यानी खड़े होते ही पहले 15 बार फिर सूरे मिलाने के बाद 10 बार फिर रुकूअ् में 10 बार फिर क़याम में 10 बार फिर सजदे में 10 बार फिर जलसा में 10 बार फिर दूसरे सजदे में 10 बार। दूसरी रकात में कअ्दा में बैठकर अत्‍तहियात पढ़ें और फिर तीसरी रकात के लिए खड़े हो जाएं। तीसरी रकअ्त में 75 मरतबा और चौथी रकअ्त में 75 मरतबा तस्‍बीह पढ़ें। चौथी रकात में कअदा में बैठकर अत्‍तहियात, दरूद इब्राहिम और दुआ पढ़कर नमाज़ मुकम्‍मल करें। इस तरह चार रकअत में कुल 300 मरतबा तस्‍बीह पढ़ी जाएगी।

शब ए बरात की फज़ीलत और नफ्ल नमाजे़ं